बबीता प्रजापति
झाँसी (उत्तरप्रदेश)
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हो रहा शुरू,
एक नया-सा सफर
न तुम्हें है खबर,
न हमें है खबर
बसंती पुरवाई का,
है असर
न तुम्हें है खबर,
न हमें है खबर।
मसरूफ-सी ज़िंदगी में,
कुछ दस्तक दी फुर्सत ने
बैठे जो कुछ सहर,
यादों का लगा पहर
न तुम्हें है खबर,
न हमें है खबर।
खैरख्वाह हो गए,
वो मेहरबां हो गए
टकराई जबसे उनकी नज़र।
न तुम्हें है खबर,
न हमें है खबर॥