राजू महतो ‘राजूराज झारखण्डी’
धनबाद (झारखण्ड)
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इस दुनिया में रहना नहीं,
हमें एक दिन तो जाना है
जाएगा साथ नहीं कुछ भी,
फिर किसका ताना-बाना है।
रहा बचपन में जब तक,
सोंचा हर खिलौने मेरा है
माता-पिता ही है सब-कुछ,
नहीं दूजा कोई सहारा है।
जैसे ही हुआ थोड़ा-सा बड़ा,
मित्रों के संग हुआ मैं खड़ा
खड़े-खड़े फिर विचारा है,
मित्र मंडल ही न्यारा है।
फिर जाने लगा मैं विद्यालय,
विद्यालय में मिले पूज्य गुरु
गुरु जी से मिलने लगा ज्ञान,
ज्ञान पा समझा गुरु हैं महान।
शिक्षित हो शुरू किया काम,
काम का मिलने लगा दाम
दाम के चक्कर में अब सोंचा,
धन का ही है दुनिया में नाम।
अब अपने को सोचने लगा सम्पन्न,
पत्नी आई, बच्चे हुए और हर्षित मन
हर्षित मन सोचा यही है पूरा परिवार
यही है संसार, बस यही है संसार।
समय बीता और हो गया वृद्ध,
ध्यान आया क्या किया सिद्ध
जीवन भर मोह-माया चलता रहा,
आया अंत समय, यही खलता रहा।
अंत समय यह आया हमें ज्ञान,
दुनिया है मोह-माया का सामान।
यहाँ नहीं कोई स्थाई कारोबार,
यह केवल मोह-माया का संसार॥
परिचय– साहित्यिक नाम `राजूराज झारखण्डी` से पहचाने जाने वाले राजू महतो का निवास झारखण्ड राज्य के जिला धनबाद स्थित गाँव- लोहापिटटी में हैL जन्मतारीख १० मई १९७६ और जन्म स्थान धनबाद हैL भाषा ज्ञान-हिन्दी का रखने वाले श्री महतो ने स्नातक सहित एलीमेंट्री एजुकेशन(डिप्लोमा)की शिक्षा प्राप्त की हैL साहित्य अलंकार की उपाधि भी हासिल हैL आपका कार्यक्षेत्र-नौकरी(विद्यालय में शिक्षक) हैL सामाजिक गतिविधि में आप सामान्य जनकल्याण के कार्य करते हैंL लेखन विधा-कविता एवं लेख हैL इनकी लेखनी का उद्देश्य-सामाजिक बुराइयों को दूर करने के साथ-साथ देशभक्ति भावना को विकसित करना हैL पसंदीदा हिन्दी लेखक-प्रेमचन्द जी हैंL विशेषज्ञता-पढ़ाना एवं कविता लिखना है। देश और हिंदी भाषा के प्रति आपके विचार-“हिंदी हमारे देश का एक अभिन्न अंग है। यह राष्ट्रभाषा के साथ-साथ हमारे देश में सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा है। इसका विकास हमारे देश की एकता और अखंडता के लिए अति आवश्यक है।