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मौसमी तबाही

हेमराज ठाकुर
मंडी (हिमाचल प्रदेश)
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हिमाचल में फैली मौसमी तबाही,
पहाड़ों के पहाड़ ही दरक रहे हैं
भूस्खलन कहीं बादलों का फटना,
पेड़-पौधे और मकान सरक रहे हैं।

सड़कें बन्द, पैदल पथ भी हुए बन्द,
लोग बेघर हो कर अब तड़प रहे हैं
कई लोगों ने जान से ही हाथ धो डाले,
चीखते हैं,-“हे प्रभु! बड़े बुरे लटक रहे हैं।”

जुलाई-अगस्त २०२३ की यह घटना,
लोगों के दिलों-दिमाग को खटकाती है
पुरखों की मानें तो हर सौ साल के दौर में,
ऐसी कुदरती आफ़त हमेशा से ही आती है।

क्या मानें ? विज्ञान सही या ज्ञान सही,
या फिर पुरखों का अनुभव ही सच्चा है ?
या फिर यह कुदरत का नियम है अपना ?
या कि यह सब मानव निर्मित ही खता है ?

सरकार बेबाक है, जनता भी परेशान है,
पक्ष-विपक्ष में है तीखी-सी टोका-टोकी
व्योवृद्ध कहते हैं, विपदा में एकजुट रहो,
क्यों सेंक रहे हैं आफ़त में सियासी रोटी ?

सत्ता विपक्ष के सब नेता नित दौड़े हैं,
पीड़ितों की खैर-खबर सब लेते हैं
यही सामाजिक चलन है जमाने का,
बाकी घर-बार तो कौन बना कर देते हैं ?

आए न मुसीबत दुश्मन को भी ऐसी,
हर जुबान से लोग यही बतियाते हैं
पुरखों की मानें तो यह मौके का डर है,
बाद में लोग फिर से दया-धर्म भुलाते हैं।

कुछ भी कहो, यह सनातन सच है कि,
कुदरत के आगे हम सब थोथे-बौने हैं।
यह मेरा-तेरा, मैं बड़ा और वह छोटा,
सब मानुषी खेल झूठे और घिनौने हैं॥