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कैद,रिहाई और आजादी

नरेंद्र श्रीवास्तव
गाडरवारा( मध्यप्रदेश)
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पिंजरे में बंद
पक्षी,
छटपटाता है
रिहाई के लिए,
वह देखता है
पिंजरे की लोहे की पट्टियों की,
बीच की जगह से
उन्मुक्त आकाश,
और
उड़ते हुए पक्षी।

उसके निढाल और बेबस पंख
देते हैं पीड़ा,
वह कोसता है
भूल और गलती के
उन पलों को,
जिसने बख्शी है
उसे कैद,
और छीना है
उससे
खुला आकाश,
लहलहाते खेत
धरती और घोंसला।

आजादी…आजादी होती है
खुद की मरजी,
जहाँ जी चाहे
उड़ो…फिरो…घूमो…,
पूरा आकाश
पूरी धरती,
हमारी है।

कैद सजा है
फड़फड़ाते रहने की,
और रिहाई
एक सीख है,
अब न करना
ऐसी भूल
या कोई गलती,
जो छीने
हम ही से
हमारी आजादी,
पंखों का रंग
और
पैरों की तासीर॥

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