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ये तपती धरती..

मोहित जागेटिया
भीलवाड़ा(राजस्थान)
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गर्मी का वार हो रहा है,
पारा पचास से भी पार हो रहा हैl
लू के थपेड़े पड़ रहे,
बढ़ रही गर्मी तप रही धरती
भानु की आग से जल रही धरतीl
पेड़-पौधों की कमी खल रही,
तपती धरती से पेड़-पौधे भी जल रहेl
बदलते मौसम की ये मार पड़ रही,
बीमारी बढ़ रही,आँखें,बदन जल रहाl
प्यास बढ़ रही,होंठ सूख रहे,
नीर की कमी खल रही।
ये तपती धरती…
बारिश के लिए तरस रही,
तपती धरती से सृष्टि जल रहीl
इस तपन से बचने के लिए,
ज्यादा से ज्यादा पेड़ लगाने होंगे
पानी को बचाना होगाll

परिचय–मोहित जागेटिया का जन्म ६ अक्तूबर १९९१ में ,सिदडियास में हुआ हैl वर्तमान में आपका बसेरा गांव सिडियास (जिला भीलवाड़ा, राजस्थान) हैl यही स्थाई पता भी है। स्नातक(कला)तक शिक्षित होकर व्यवसायी का कार्यक्षेत्र है। इनकी लेखन विधा-कविता,दोहे,मुक्तक है। इनकी रचनाओं का प्रकाशन-राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में जारी है। एक प्रतियोगिता में सांत्वना सम्मान-पत्र मिला है। मोहित जागेटिया ब्लॉग पर भी लिखते हैं। आपकी लेखनी का उद्देश्य-समाज की विसंगतियों को बताना और मिटाना है। रुचि-कविता लिखना है।

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