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रक्षाबंधन-अतीत के आईने में

प्रो.डॉ. शरद नारायण खरे
मंडला(मध्यप्रदेश)
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रक्षाबंधन विशेष…..

“खुशियाँ लेकर आ गया,रक्षाबंधन पर्व।
धर्म आज मंगल करे,नीति कर रही गर्व॥
‘बहना ने भाई की कलाई से प्यार बाँधा है, प्यार के दो तार से संसार बाँधा है…’ सुमन कल्याणपुर द्वारा गाया गया यह गाना रक्षाबंधन का बेहद चर्चित गाना है। भले ही ये गाना बहुत पुराना न हो, पर भाई की कलाई पर राखी बाँधने का सिलसिला बेहद प्राचीन है। रक्षाबंधन का इतिहास सिंधु घाटी की सभ्यता से जुड़ा हुआ है। वह भी तब, जब आर्य समाज में सभ्यता की रचना की शुरुआत मात्र हुई थी।
हिंदू धर्म में रक्षाबंधन का त्योहार काफी धूमधाम से मनाया जाता है। ये पर्व भाई-बहन के अटूट रिश्ते का प्रतीक है। इस दिन बहनें भाई की कलाई में राखी बांधती हैं और उनके अच्छे स्वास्थ व लंबे जीवन की कामना करती हैं, तो भाई अपनी बहन को इस अवसर पर कठिन परिस्थिति में उसका साथ देने का वादा करता है। रक्षाबंधन का त्योहार श्रावण मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। देश भर में यह त्योहार इस बार ११ अगस्त (गुरुवार) को मनाया जाएगा, जिसके लिए बहनों ने अच्छी तरह से तैयारी की है। वास्तव में रक्षाबंधन भाई-बहन के अटूट प्रेम को समर्पित त्योहार है, जो सदियों से मनाया जाता आ रहा है।
रक्षाबंधन पर्व पर जहाँ बहनें, भाइयों की कलाई में रक्षा का धागा बाँधने का बेसब्री से इंतजार करती हैं, वहीं दूर रह रहे भाइयों को भी इस बात का इंतजार होता है कि बहना उन्हें राखी भेजे। उन भाइयों को निराश होने की जरूरत नहीं है, जिनकी अपनी सगी बहन नहीं है, क्योंकि मुँहबोली-धर्म बहनों से भी राखी बंधवाने की परम्परा काफी पुरानी है।
वास्तव में, रक्षाबंधन की परम्परा ही उन बहनों ने डाली थी, जो सगी नहीं थीं। भले ही उन बहनों ने अपने संरक्षण के लिए ही इस पर्व की शुरुआत क्यों न की हो, लेकिन उसी बदौलत आज भी इस त्योहार की मान्यता बरकरार है। पौराणिक मान्यताओं को देखें तो इस त्योहार की शुरुआत की उत्पत्ति लगभग ६ हजार साल पहले बताई गई है।
भगवत पुराण और विष्णु पुराण के आधार पर यह माना जाता है कि, जब भगवान विष्णु ने राजा बलि को हरा कर तीनों लोकों पर अधिकार कर लिया, तो बलि ने भगवान विष्णु से उनके महल में रहने का आग्राह किया। भगवान विष्णु इस आग्रह को मान गए। हालाँकि, भगवान विष्णु की पत्नी लक्ष्मी को भगवान विष्णु और बलि की मित्रता अच्छी नहीं लग रही थी, अतः उन्होंने भगवान विष्णु के साथ वैकुण्ठ जाने का निश्चय किया। इसके बाद माँ लक्ष्मी ने बलि को रक्षा धागा बाँध कर भाई बना लिया। इस पर बलि ने मनचाहा उपहार मांगने के लिए कहा। माँ लक्ष्मी ने राजा बलि से कहा कि, वह भगवान विष्णु को इस वचन से मुक्त करे कि भगवान विष्णु उसके महल मे रहेंगे। बलि ने ये बात मान ली और साथ ही माँ लक्ष्मी को बहन के रूप में भी स्वीकारा।
एक अन्य पौराणिक कहानी के अनुसार,-मृत्यु के देवता यम जब अपनी बहन यमुना से १२ वर्ष तक मिलने नहीं गए, तो यमुना दुखी हुई और माँ गंगा से इस बारे में बात की। गंगा ने यह सूचना यम तक पहुंचाई कि यमुना उनकी प्रतीक्षा कर रही हैं। इस पर यम युमना से मिलने आए। यम को देख कर यमुना बहुत खुश हुईं और विभिन्न तरह के व्यंजन भी बनाए। यम को इससे बेहद ख़ुशी हुई और उन्होंने यमुना से कहा कि वे मनचाहा वरदान मांग सकती है। इस पर यमुना ने उनसे ये वरदान माँगा कि यम जल्द पुनः अपनी बहन के पास आएं। यम अपनी बहन के प्रेम और स्नेह से गद-गद हो गए और यमुना को अमरत्व का वरदान दिया। भाई- बहन के इस प्रेम को भी रक्षा बंधन के हवाले से याद किया जाता है।
पौराणिक मान्यता के अनुसार युद्ध के दौरान कृष्ण के बाएँ हाथ की अँगुली से खून बह रहा था। इसे देखकर द्रोपदी बेहद दुखी हुईं और उन्होंने अपनी साड़ी का टुकड़ा चीरकर अँगुली में बाँधा।तभी से कृष्ण ने द्रोपदी को अपनी बहन स्वीकार कर लिया था। वर्षों बाद जब भरी सभा में उनका चीरहरण हो रहा था, तब कृष्ण ने द्रोपदी की लाज बचाई थी।
दूसरा उदाहरण अलेक्जेंडर व पुरू के बीच का माना जाता है। कहा जाता है कि हमेशा विजयी रहने वाला अलेक्जेंडर भारतीय राजा पुरू की प्रखरता से काफी विचलित हुआ। इससे अलेक्जेंडर की पत्नी काफी तनाव में आ गईं थीं। उसने रक्षाबंधन के त्योहार के बारे में सुना था। सो, उन्होंने भारतीय राजा पुरू को राखी भेजी। तब जाकर युद्ध की स्थिति समाप्त हुई, क्योंकि पुरू ने अलेक्जेंडर की पत्नी को बहन मान लिया था।
इतिहास के पन्ने पलटने पर रक्षाबंधन का साक्ष्य रानी कर्णावती व सम्राट हुमायूँ भी है। मध्यकालीन युग में राजपूत व मुस्लिमों के बीच संघर्ष चल रहा था। उस दौरान गुजरात के सुल्तान बहादुर शाह से अपनी और अपनी प्रजा की सुरक्षा का कोई रास्ता न निकलता देख रानी ने हुमायूँ को राखी भेजी थी। तब हुमायूँ ने उनकी रक्षा कर उन्हें बहन का दर्जा दिया था।
यही कहा जा सकता है कि,
‘धागा में तो प्रेम है,बिन स्वारथ हैं भाव।
मंगलमय,पावन दिवस,रखता है अति ताव॥’

परिचय–प्रो.(डॉ.)शरद नारायण खरे का वर्तमान बसेरा मंडला(मप्र) में है,जबकि स्थायी निवास ज़िला-अशोक नगर में हैL आपका जन्म १९६१ में २५ सितम्बर को ग्राम प्राणपुर(चन्देरी,ज़िला-अशोक नगर, मप्र)में हुआ हैL एम.ए.(इतिहास,प्रावीण्यताधारी), एल-एल.बी सहित पी-एच.डी.(इतिहास)तक शिक्षित डॉ. खरे शासकीय सेवा (प्राध्यापक व विभागाध्यक्ष)में हैंL करीब चार दशकों में देश के पांच सौ से अधिक प्रकाशनों व विशेषांकों में दस हज़ार से अधिक रचनाएं प्रकाशित हुई हैंL गद्य-पद्य में कुल १७ कृतियां आपके खाते में हैंL साहित्यिक गतिविधि देखें तो आपकी रचनाओं का रेडियो(३८ बार), भोपाल दूरदर्शन (६ बार)सहित कई टी.वी. चैनल से प्रसारण हुआ है। ९ कृतियों व ८ पत्रिकाओं(विशेषांकों)का सम्पादन कर चुके डॉ. खरे सुपरिचित मंचीय हास्य-व्यंग्य  कवि तथा संयोजक,संचालक के साथ ही शोध निदेशक,विषय विशेषज्ञ और कई महाविद्यालयों में अध्ययन मंडल के सदस्य रहे हैं। आप एम.ए. की पुस्तकों के लेखक के साथ ही १२५ से अधिक कृतियों में प्राक्कथन -भूमिका का लेखन तथा २५० से अधिक कृतियों की समीक्षा का लेखन कर चुके हैंL  राष्ट्रीय शोध संगोष्ठियों में १५० से अधिक शोध पत्रों की प्रस्तुति एवं सम्मेलनों-समारोहों में ३०० से ज्यादा व्याख्यान आदि भी आपके नाम है। सम्मान-अलंकरण-प्रशस्ति पत्र के निमित्त लगभग सभी राज्यों में ६०० से अधिक सारस्वत सम्मान-अवार्ड-अभिनंदन आपकी उपलब्धि है,जिसमें प्रमुख म.प्र. साहित्य अकादमी का अखिल भारतीय माखनलाल चतुर्वेदी पुरस्कार(निबंध-५१० ००)है।

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