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रोको दहेज के रोग को

श्रीमती देवंती देवी
धनबाद (झारखंड)
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अन्तर्मन घबरा जाता,सुन के दहेज के लोग को,
मिल के सब भाई-बहना,रोको दहेज के रोग को।

दहेज के चलते सखी,मेरी बेटी भी मारी गई,
ना जाना धन लोभी है,बेटी देने ओ द्वारे गई।

अपनी प्यारी बिटिया को मैं बड़े प्यार से पाली थी,
रो-रो कर कहती है माँ,वह हँसमुख भाव वाली थी।

पढ़ा-लिखा महाविद्वान,वर ढूँढ के बाबा लाए थे,
बिटिया को खुश रखेगा,सोच के जमाई बनाए थे।

जो माँगा वह दिया,अन्तर्मन से ढेर प्यार भी दिया,
कोमल पुष्प लता जैसी,प्यारी बेटी दे विदा किया।

पिता नहीं जान सके थे,क्या है मन की बात,
कुछ दिन-महीने बीते,आ गई थी वह काली रात।

आग लगाकर मार दिया दानव ने,थे दौलत के लालची,
उसे मिल के सबक सिखाएंगे,जो हैं दहेज के लालची।

कितनी चिल्लाई होगी बिटिया,अपनों को आवाज दी होगी,
क्या बीती होगी उस क्षण,जब तन में आग लगी होगी।

चीखती-चिल्लाती बेटी,अन्त क्षण सभी को पुकारती।
दहेज रोक लो,दहेज रोक लो…यह कहते विदा लेती।

क्यों चलाए पूर्वज,दहेज का यह जहरीला रोग,
दहेज के चलते बेटी मारी गई,रोते थे घर के लोग॥

परिचय-श्रीमती देवंती देवी का ताल्लुक वर्तमान में स्थाई रुप से झारखण्ड से है,पर जन्म बिहार राज्य में हुआ है। २ अक्टूबर को संसार में आई धनबाद वासी श्रीमती देवंती देवी को हिन्दी-भोजपुरी भाषा का ज्ञान है। मैट्रिक तक शिक्षित होकर सामाजिक कार्यों में सतत सक्रिय हैं। आपने अनेक गाँवों में जाकर महिलाओं को प्रशिक्षण दिया है। दहेज प्रथा रोकने के लिए उसके विरोध में जनसंपर्क करते हुए बहुत जगह प्रौढ़ शिक्षा दी। अनेक महिलाओं को शिक्षित कर चुकी देवंती देवी को कविता,दोहा लिखना अति प्रिय है,तो गीत गाना भी अति प्रिय है।

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