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रोशनी

डॉ. श्राबनी चक्रवर्ती
बिलासपुर (छतीसगढ़)
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रोशनी तब भी थी,
रोशनी अब भी है
सिर्फ़ देखने का,
अंदाज़ कुछ अलग है।

घने जंगल के छोर पर,
कुटिया में रोशनी की लौ थी
पूर्णिमा की आभा में पथरीले रास्ते,
चंद्रमा की रोशनी से जगमगा उठे।

जीवन के अंधेरे गलियारों में,
पिता ने आलोकित किया मन
छोटे-बड़े हर संघर्ष में माँ की,
प्रेरणा ज्योत ने प्रकाशित किया जीवन।

सूरज और चाँद कितनी खूबी से,
बिखेरते हैं अपनी रोशनी
सूरज से जिंदगी चले,
तो रात में चाँद से सुकून मिले।

एक प्यारी-सी मुस्कान,
चमक लाती है थके हुए चेहरे पर
दोस्तों की महफ़िल कर जाती है कैसे,
रोते हुए शख्स को भी हँसा कर रौशन।

जब भी तुम्हें देखूं सनम,
चमक उठे मेरे नयन।
जगा दे उत्साह की नई किरण,
चल पढ़ूं मैं फिर से मगन॥

परिचय- शासकीय कन्या स्नातकोत्तर महाविद्यालय में प्राध्यापक (अंग्रेजी) के रूप में कार्यरत डॉ. श्राबनी चक्रवर्ती वर्तमान में छतीसगढ़ राज्य के बिलासपुर में निवासरत हैं। आपने प्रारंभिक शिक्षा बिलासपुर एवं माध्यमिक शिक्षा भोपाल से प्राप्त की है। भोपाल से ही स्नातक और रायपुर से स्नातकोत्तर करके गुरु घासीदास विश्वविद्यालय (बिलासपुर) से पीएच-डी. की उपाधि पाई है। अंग्रेजी साहित्य में लिखने वाले भारतीय लेखकों पर डाॅ. चक्रवर्ती ने विशेष रूप से शोध पत्र लिखे व अध्ययन किया है। २०१५ से अटल बिहारी वाजपेयी विश्वविद्यालय (बिलासपुर) में अनुसंधान पर्यवेक्षक के रूप में कार्यरत हैं। ४ शोधकर्ता इनके मार्गदर्शन में कार्य कर रहे हैं। करीब ३४ वर्ष से शिक्षा कार्य से जुडी डॉ. चक्रवर्ती के शोध-पत्र (अनेक विषय) एवं लेख अंतर्राष्ट्रीय-राष्ट्रीय पत्रिकाओं और पुस्तकों में प्रकाशित हुए हैं। आपकी रुचि का क्षेत्र-हिंदी, अंग्रेजी और बांग्ला में कविता लेखन, पाठ, लघु कहानी लेखन, मूल उद्धरण लिखना, कहानी सुनाना है। विविध कलाओं में पारंगत डॉ. चक्रवर्ती शैक्षणिक गतिविधियों के लिए कई संस्थाओं में सक्रिय सदस्य हैं तो सामाजिक गतिविधियों के लिए रोटरी इंटरनेशनल आदि में सक्रिय सदस्य हैं।