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रौशनी बिखेरते चलें हम

डाॅ. मधुकर राव लारोकर ‘मधुर’ 
नागपुर(महाराष्ट्र)

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दिलों को,दिल से जोड़ कर,
रौशन किया,सपनों का महल।
अपनों का,साथ भी मिला,
सजाया जैसे,अपना हो शीशमहल।
ना जानें क्यों,लोगों की,
खुशी के लिए,जलाता नहीं
दिया कोई,दिल का।
घर-सामान की सफाई,
करते हैं,पर्व में सभी
तन-मन की गंदगी,देखता नहीं कोई,
के प्यार से दिया,जले दिल का।
हम उपहार में दे रहे,
आतंक और नफ़रत सभी को।
बांटता नहीं,कोई मिठाई,
समझ मोहब्बत,सभी को।
हर साँस,भर रही आह,
जुल्म के,साये तले
क्रंदन करती,है आत्मा।
विश्वास,भाईचारा,
बनी है,एक पहेली
घायल भी तो,है आज आत्मा।
पूर्वजों ने बताया-
धर्म ने दिया उपदेश,
दीवाली है असत्य पर
सत्य की जीत।
हमने मनाया इसे नफ़रत,
स्वार्थ के,बारूद से जलाकर
इंसानियत की,यह कैसी जीत।
तो दीपावली मनाना तुम,
सत्यनिष्ठा की,ज्योत जलाकर।
मानवता के दुश्मन,को सबक
सिखाना,सर्वधर्म की रक्षा कर।
हर दिल सत्य,की राह चले,
रौशनी बिखेरते,चलें हम।
दानव पर देवत्व की हो विजय,
दीपावली में शपथ लें,सभी हम॥

परिचय-डाॅ. मधुकर राव लारोकर का साहित्यिक उपनाम-मधुर है। जन्म तारीख़ १२ जुलाई १९५४ एवं स्थान-दुर्ग (छत्तीसगढ़) है। आपका स्थायी व वर्तमान निवास नागपुर (महाराष्ट्र)है। हिन्दी,अंग्रेजी,मराठी सहित उर्दू भाषा का ज्ञान रखने वाले डाॅ. लारोकर का कार्यक्षेत्र बैंक(वरिष्ठ प्रबंधक पद से सेवानिवृत्त)रहा है। सामाजिक गतिविधि में आप लेखक और पत्रकार संगठन दिल्ली की बेंगलोर इकाई में उपाध्यक्ष हैं। इनकी लेखन विधा-पद्य है। प्रकाशन के तहत आपके खाते में ‘पसीने की महक’ (काव्य संग्रह -१९९८) सहित ‘भारत के कलमकार’ (साझा काव्य संग्रह) एवं ‘काव्य चेतना’ (साझा काव्य संग्रह) है। विविध पत्र-पत्रिकाओं में आपकी लेखनी को स्थान मिला है। प्राप्त सम्मान-पुरस्कार में मुंबई से लिटरेरी कर्नल(२०१९) है। ब्लॉग पर भी सक्रियता दिखाने वाले ‘मधुर’ की विशेष उपलब्धि-१९७५ में माउंट एवरेस्ट पर आरोहण(मध्यप्रदेश का प्रतिनिधित्व) है। लेखनी का उद्देश्य-हिन्दी की साहित्य सेवा है। पसंदीदा लेखक-मुंशी प्रेमचंद है। इनके लिए प्रेरणापुंज-विदर्भ हिन्दी साहित्य सम्मेलन(नागपुर)और साहित्य संगम, (बेंगलोर)है। एम.ए. (हिन्दी साहित्य), बी. एड.,आयुर्वेद रत्न और एल.एल.बी. शिक्षित डाॅ. मधुकर राव की विशेषज्ञता-हिन्दी निबंध की है। अखिल भारतीय स्तर पर अनेक पुरस्कार। देश और हिन्दी भाषा के प्रति विचार-
“हिन्दी है काश्मीर से कन्याकुमारी,
तक कामकाज की भाषा।
धड़कन है भारतीयों की हिन्दी,
कब बनेगी संविधान की राष्ट्रभाषा॥”

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