हेमराज ठाकुर
मंडी (हिमाचल प्रदेश)
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राम-राज…
भटक जाते हैं अक्सर वे लोग, जो भीड़ बनाकर ही चलते हैं
होते हैं पार वही लोग सदा,
जो लीक नई बनाकर चलते हैं।
हमें आदत सी हो गई है अक्सर,
लीक पर भीड़ में चलने की
हो न तनिक भी इच्छा मन में, समाज में घुलने व रलने की।
राम-राज की सोच रहे जो, वे राम जैसी नई राहें कब बनाएंगे ?
रावण से छुड़ा कर सीता को, दिवाकर के कहने पर कब तक भगाएंगे ?
क्या वाल्मीकि के आश्रम में जन्मे,
लव-कुश को भी वे अपनाएंगे ?
या थोथी बातें कर-करके,
बस ख्याली पुलाव ही पकाएंगे ??
राम-राज की खातिर हमको, बीहड़ वन में पैदल चलना होगा
सोने की लंका के वैभव से सबको,
जान-बूझ कर टलना होगा।
खाली सपना देख के किसी के,
यहाँ कैसे दिवाली हो पाएगी ?
ईर्ष्या-द्वेष की अंधेरी रात में, बिन प्रेम प्रकाश के कैसे उजियाली छाएगी ?
खेल नहीं है बच्चों का राम- राज,
यह लम्बा संघर्ष और गहन तप है।
आज राजनीति के गलियारों में कहाँ,
यह महज सियासी गप है॥