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विषय और भाषा का सामंजस्य होना चाहिए

इंदौर (मप्र)।

शब्द ब्रह्म होता है। व्यक्ति अपनी भावनाओं को व्यक्त करने के लिए कला का आश्रय लेता है। कविता मन की अनुभूति से निकलती है। इसमें विषय और भाषा का सामंजस्य होना चाहिए।
माता जीजाबाई शासकीय स्नातकोत्तर कन्या महाविद्यालय (मोती तबेला) में हिंदी विभाग द्वारा रचनात्मक लेखन-विविध विधाएँ विषय पर कार्यशाला में विषय विशेषज्ञ डॉ. पद्मासिंह ने यह बात कही। डॉ. डॉ. सध्या गंगराड़े व देअविवि के पत्रकारिता विभाग की प्रमुख डॉ. सोनाली नरगुंदे ने भी प्रतिभागियों को महत्वपूर्ण विचारों से अवगत कराया। डॉ. गंगराडे ने ‘आत्मकथा’ विषय पर बताया कि आत्मकथा में अन्य विधाओं के समान कल्पना का सम्मिश्रण नहीं किया जा सकता। इसमें कथानक सरल एवं सहज होता है। स्वानुभूति के साथ तटस्थता, अपनी गलतियों को स्वीकारने का साहस भी हो। डॉ. नरगुंदे ने फीचर लेखन के विविध बिंदुओं पर प्रकाश डाला, साथ ही छात्राओं से रूपक (फीचर) भी लिखवाए।
विभागाध्यक्ष डॉ. वंदना अग्निहोत्री ने कार्यशाला का प्रतिवेदन प्रस्तुत किया। अतिथि स्वागत डॉ. राजश्री शाह ने किया। अतिथि परिचय डॉ. गंगाराम डुडवे ने दिया। संचालन डॉ. शर्मिला चौहान ने किया। आभार डॉ. प्रतिभा सोलंकी ने माना।

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