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शिक्षा और जनाधिकार के प्रति जागृति अपेक्षित

डॉ.राम कुमार झा ‘निकुंज’
बेंगलुरु (कर्नाटक)

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वस्तुत:, भ्रष्टाचारी सांसद- विधायक के चुने जाने पर पार्टी जिम्मेदार है, या आम आदमी ?, यह एक गंभीर और विचारणीय प्रश्न है। अब भी भारतीय लोकतांत्रिक जन मानस की सत्तर प्रतिशत जनता शिक्षा और सामाजिक राजनीतिक शिक्षालोक से वंचित है। जिस देश के ८० प्रतिशत लोग आज भी ५ किलो अनाज, १ किलो दाल, १ पैकेट नमक, २ हजार रूपए की किसान राहत योजना और मुफ्त बिजली पानी एवं मुफ्तखोरी पर जीवित रह रहे हों, वहाँ लोकतांत्रिक कर्त्तव्य बोध और समता, स्वतंत्रता एवं मताभिव्यक्ति के अधिकार से कैसे परिचित हो सकते हैं ? करोड़ों लावारिस लाशों की तरह सड़कों पर पड़ी बिना छत वसन और अन्न के भारतीय जनता इन सामन्तवादी, रूढ़िवादी और कुछेक खरबपतियों, सामाजिक और राजनीतिक ठेकेदारों, सामन्तों, नेताओं और सत्ताधारियों द्वारा फेंकी गईं मुफ्तख़ोरी में आबद्ध और भूख-प्यास के जठरानल में दहकती ज्वाला को शान्त करने हेतु जनता उनके लालची गढ्ढे में फँस जाती है। फिर अपने मताधिकार के मौलिक दायित्व को भ्रष्टाचारियों, आतंकवादियों, दंगाइयों, हिंसकों और असामाजिक नेता बने लोगों को सांसदों-विधायकों-पार्षदों के रूप में चुनाव मैदान में उतरने वाले लोगों को अपना बहुमूल्य मताधिकार का प्रयोग कर देते हैं और उन्हें अपना अपना प्रतिनिधि चुन लेते हैं। ये राजनीतिक नेता लोग भूख-प्यास, घर, वसन से विहीन जनता को जाति, धर्म, भाषा, क्षेत्र आदि के नाम पर सामाजिक विद्वेष की आग में झोंक कर लड़वाते और भड़काते हैं। अशिक्षित और लाचार भारतीय जनमानस नेताओं के वादों की भूल-भुलैया में फँस अपने मताधिकार का दुरूपयोग करते हैं। अतः निश्चय ही हमें सरकारों की सामान्य जनमानस उपेक्षा और सामाजिक-राजनीतिक एवं समरसता के प्रति जनजागरण और समुचित शिक्षा से वंचित रखना है, जिससे वे नासमझ जनता बनी रहें, जागरुक न हो पाएँ, अपने मताधिकार की उपयोगिता और राष्ट्रनिर्माण में अपने योगदान को न समझ सकें। अत: ये राजनीतिक नेता और नीति विशेष रूप से जिम्मेदार हैं, जो भटके हुए और भूख-प्यास से आर्त एवं शिक्षा लोक से विरत जनता जनार्दन को मूर्ख, दीन-हीन और नि:सहाय बने रहने देना चाहते हैं, ताकि जनता के मत इन भ्रष्टाचारी उम्मीदवारों को मिल सकें और वे जीत जाएँ। इसलिए जनता में शिक्षा और जनाधिकार के प्रति जागृति अपेक्षित है।

परिचय-डॉ.राम कुमार झा का साहित्यिक उपनाम ‘निकुंज’ है। १४ जुलाई १९६६ को दरभंगा में जन्मे डॉ. झा का वर्तमान निवास बेंगलुरु (कर्नाटक)में,जबकि स्थाई पता-दिल्ली स्थित एन.सी.आर.(गाज़ियाबाद)है। हिन्दी,संस्कृत,अंग्रेजी,मैथिली,बंगला, नेपाली,असमिया,भोजपुरी एवं डोगरी आदि भाषाओं का ज्ञान रखने वाले श्री झा का संबंध शहर लोनी(गाजि़याबाद उत्तर प्रदेश)से है। शिक्षा एम.ए.(हिन्दी, संस्कृत,इतिहास),बी.एड.,एल.एल.बी., पीएच-डी. और जे.आर.एफ. है। आपका कार्यक्षेत्र-वरिष्ठ अध्यापक (मल्लेश्वरम्,बेंगलूरु) का है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत आप हिंंदी भाषा के प्रसार-प्रचार में ५० से अधिक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय साहित्यिक सामाजिक सांस्कृतिक संस्थाओं से जुड़कर सक्रिय हैं। लेखन विधा-मुक्तक,छन्दबद्ध काव्य,कथा,गीत,लेख ,ग़ज़ल और समालोचना है। प्रकाशन में डॉ.झा के खाते में काव्य संग्रह,दोहा मुक्तावली,कराहती संवेदनाएँ(शीघ्र ही)प्रस्तावित हैं,तो संस्कृत में महाभारते अंतर्राष्ट्रीय-सम्बन्धः कूटनीतिश्च(समालोचनात्मक ग्रन्थ) एवं सूक्ति-नवनीतम् भी आने वाली है। विभिन्न अखबारों में भी आपकी रचनाएँ प्रकाशित हैं। विशेष उपलब्धि-साहित्यिक संस्था का व्यवस्थापक सदस्य,मानद कवि से अलंकृत और एक संस्था का पूर्व महासचिव होना है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-हिन्दी साहित्य का विशेषकर अहिन्दी भाषा भाषियों में लेखन माध्यम से प्रचार-प्रसार सह सेवा करना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-महाप्राण सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ है। प्रेरणा पुंज- वैयाकरण झा(सह कवि स्व.पं. शिवशंकर झा)और डॉ.भगवतीचरण मिश्र है। आपकी विशेषज्ञता दोहा लेखन,मुक्तक काव्य और समालोचन सह रंगकर्मी की है। देश और हिन्दी भाषा के प्रति आपके विचार(दोहा)-
स्वभाषा सम्मान बढ़े,देश-भक्ति अभिमान।
जिसने दी है जिंदगी,बढ़ा शान दूँ जान॥ 
ऋण चुका मैं धन्य बनूँ,जो दी भाषा ज्ञान।
हिन्दी मेरी रूह है,जो भारत पहचान॥