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शिव-वन्दना

प्रो.डॉ. शरद नारायण खरे
मंडला(मध्यप्रदेश)
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देवाधिदेव हे महादेव!, हे शिवशंकर त्रिपुरारी।
हे आशुतोष! हे गौरीपति!, प्रभु! विनती सुनो हमारी॥

हे शिवशंकर! हे परम सत्य!,तुम हो जग के रखवाले,
तुम हो कल्याणक परम ताप,अब दूर करो दिन काले।
दया,नेह करना हम पर तुम, टारो तुम विपदा सारी,
हे आशुतोष! हे गौरीपति!, प्रभु! विनती सुनो हमारी…॥

भोले भंडारी, महादेव, तेरी महिमा का गायन,
सारे नर-नारी खुश होते, करके तेरा सब पूजन।
भूत-प्रेत के हो तुम स्वामी, हो तुम तो प्रभु अधनारी,
हे आशुतोष! हे गौरीपति!, प्रभु! विनती सुनो हमारी…॥

शीश तुम्हारे चंदा शोभित, डमरू बोले है डम-डम,
हर दानव को तुमने मारा, रखते हो चोखा दम-खम।
आदिदेव, हे प्रभु सोमना !, सुखमय कर दो नर-नारी,
हे आशुतोष! हे गौरीपति!, प्रभु! विनती सुनो हमारी…॥

कैलाशी तुम, अविनाशी तुम, हो प्रभु तुम तो नटनागर,
तुम कर सकते हो गिरिमर्दन, पल में पी सकते सागर।
तुमसे ही जीवन चलता है, पलती है दुनिया सारी,
हे आशुतोष! हे गौरीपति!, प्रभु! विनती सुनो हमारी…॥

मातु भवानी शक्ति संग हैं, तुम तो संताप मिटाते,
तुमसे ही जीवन हर्षित है,नित हर विकार मिट जाते।
तुम हो गतिमय, तुमसे ही लय, तुम तो हो गंगाधारी,
हे आशुतोष! हे गौरीपति!, प्रभु! विनती सुनो हमारी…॥

गौरा के सँग हुये विवाहित, सारे ही खुशी मनाते,
बेलपात को सारे ही तो, तुम पर तो सदा चढ़ाते।
शिवजी पर तो युगों-युगों से, सारे ही हैं बलिहारी,
हे आशुतोष! हे गौरीपति!, प्रभु! विनती सुनो हमारी…॥

अंधकार में तुम उजियारा, सूरज जैसे तो लगते,
तुम्हें देखकर सारे दु:ख तो, डर-डरकर तो कहिं भगते।
तुम हो भोले, मरघट-स्वामी, संग है उमा सुकुमारी,
हे आशुतोष! हे गौरीपति!, प्रभु! विनती सुनो हमारी…॥

डमरू तुम्हरा डम-डम बजता, भूत-प्रेत तो नित नाचें,
पंडित सारे महिमा गायें, शिवपुराण को नित बाँचें।
संग तुम्हारे नंदी रहता, हो नित तुम मंगलकारी,
हे आशुतोष! हे गौरीपति!, प्रभु! विनती सुनो हमारी…॥

परिचय–प्रो.(डॉ.)शरद नारायण खरे का वर्तमान बसेरा मंडला(मप्र) में है,जबकि स्थायी निवास ज़िला-अशोक नगर में हैL आपका जन्म १९६१ में २५ सितम्बर को ग्राम प्राणपुर(चन्देरी,ज़िला-अशोक नगर, मप्र)में हुआ हैL एम.ए.(इतिहास,प्रावीण्यताधारी), एल-एल.बी सहित पी-एच.डी.(इतिहास)तक शिक्षित डॉ. खरे शासकीय सेवा (प्राध्यापक व विभागाध्यक्ष)में हैंL करीब चार दशकों में देश के पांच सौ से अधिक प्रकाशनों व विशेषांकों में दस हज़ार से अधिक रचनाएं प्रकाशित हुई हैंL गद्य-पद्य में कुल १७ कृतियां आपके खाते में हैंL साहित्यिक गतिविधि देखें तो आपकी रचनाओं का रेडियो(३८ बार), भोपाल दूरदर्शन (६ बार)सहित कई टी.वी. चैनल से प्रसारण हुआ है। ९ कृतियों व ८ पत्रिकाओं(विशेषांकों)का सम्पादन कर चुके डॉ. खरे सुपरिचित मंचीय हास्य-व्यंग्य  कवि तथा संयोजक,संचालक के साथ ही शोध निदेशक,विषय विशेषज्ञ और कई महाविद्यालयों में अध्ययन मंडल के सदस्य रहे हैं। आप एम.ए. की पुस्तकों के लेखक के साथ ही १२५ से अधिक कृतियों में प्राक्कथन -भूमिका का लेखन तथा २५० से अधिक कृतियों की समीक्षा का लेखन कर चुके हैंL  राष्ट्रीय शोध संगोष्ठियों में १५० से अधिक शोध पत्रों की प्रस्तुति एवं सम्मेलनों-समारोहों में ३०० से ज्यादा व्याख्यान आदि भी आपके नाम है। सम्मान-अलंकरण-प्रशस्ति पत्र के निमित्त लगभग सभी राज्यों में ६०० से अधिक सारस्वत सम्मान-अवार्ड-अभिनंदन आपकी उपलब्धि है,जिसमें प्रमुख म.प्र. साहित्य अकादमी का अखिल भारतीय माखनलाल चतुर्वेदी पुरस्कार(निबंध-५१० ००)है।

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