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संदेशों के अमल की महती आवश्यकता

डॉ.अरविन्द जैन
भोपाल(मध्यप्रदेश)
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महावीर जयंती विशेष….

वर्तमान में व्यक्ति,देश,विश्व,समाज अशान्तिमय जीवन-यापन कर रहा है। चारों ओर दुःख,युद्ध का वातावरण बना हुआ है। हर कोई एक-दूसरे को नीचा दिखा रहा है। आज विश्व में आधिपत्य के लिए लड़ मर रहे हैं,जबकि यह अस्थायी होता है। उसके बाद भी हठधर्मिता के कारण बुनियादी बातों को भूलकर दुखी हो रहे व कर रहे हैं। ‘जियो और जीनो दो’ मात्र शब्दकोष की शोभा बढ़ाते हैं, व्यवहारिक धरातल में शून्य है। यदि अनेकांतवाद को जीवन में अपनाया जाए तो बहुत कुछ या पूरा हल निकल सकता है। आज रूस और यूक्रेन का युद्ध मात्र हठवादिता या अहम की लड़ाई है,जिसका अंत विनाश है। इससे बचने के लिए दूसरों के भावों को आदर देने से शांति स्थापित हो जाती है और उसका प्रयास क्यों किया जा रहा है-मात्र शांति स्थापित करने के लिए,जो पहले करते तो इतना विनाश न होता।
विश्व,व्यक्ति,समाज,देश,शासन-प्रशासन भगवान महावीर द्वारा प्रतिपादित सिद्धांतों को मात्र भाषण, लेखों में न लिख-बोल कर इतिश्री करें,बल्कि उन्हें जीवन में उतार कर ही सही अर्थों में सुख-शांति स्थापित कर सकते हैं। मात्र जयंती मनाने से खाना पूर्ति करनी बेमानी होगी।
महावीर जयंती का पर्व जैन धर्म के २४ वे तीर्थंकर को समर्पित होता है,जो प्रतिवर्ष जैनियों द्वारा जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है। भगवान महावीर को वर्धमान के नाम से भी जाना जाता है। इनके द्वारा ही जैन धर्म के मूल सिद्धांतों की स्थापना की गई थी। महावीर को जन्म कल्याणक के रूप में भी जाना जाता है।
महावीर ने अपने जीवनकाल में अहिंसा और आध्यात्मिक स्वतंत्रता का प्रचार किया और मनुष्य को सभी जीवों का सम्मान एवं आदर करना सिखाया। उनके द्वारा दी गई सभी शिक्षाओं और मूल्यों ने जैन धर्म नामक धर्म का प्रचार-प्रसार किया था। भगवान महावीर का जन्म उस युग में हुआ था जिस वक्त हिंसा,पशु बलि,जातिगत-भेदभाव आदि अपने जोर पर था। उन्होंने सत्य और अहिंसा जैसी विशेष शिक्षाओं द्वारा दुनिया को सही मार्ग दिखाने का प्रयास किया। उन्होंने अपने कई प्रवचनों से मनुष्यों का सही मार्गदर्शन किया।
वर्तमान समय से करीब ढाई हजार साल पहले अर्थात ईसा से ५९९ वर्ष पहले वैशाली गणतंत्र के क्षत्रिय कुंडलपुर में राजा सिद्धार्थ और उनकी पत्नी रानी त्रिशला के गर्भ से महावीर का जन्म हुआ था। महावीर को वीर,अतिवीर और सहमति के नाम से भी जाना जाता है। भगवान महावीर ने ३० वर्ष की आयु में सांसारिक मोह-माया और राज वैभव का त्याग कर आत्म कल्याण एवं संसार कल्याण के लिए संन्यास ले लिया था। माना जाता है कि १२ साल की कठोर तपस्या के बाद महावीर को ज्ञान की प्राप्ति एवं ७२ वर्ष की आयु में पावापुरी में मोक्ष की प्राप्ति हुई थी।
भगवान महावीर (जैन धर्म) के ५ मूलभूत सिद्धांत देखें तो महावीर द्वारा पंचशील सिद्धांत के बारे में बताया गया है,जो किसी भी मनुष्य को सुख तथा समृद्धि से युक्त जीवन की तरफ ले जाता है।
ऐसे ही अहिंसा,सत्य,अपरिग्रह(आवश्यकतानुसार ही वस्तुओं का संचय),अस्तेय(चोरी नहीं करना, दूसरों के प्रति बुरी दृष्टि से भी बचना) और ब्रह्मचर्य( मोह-माया छोड़ आत्मा में लीन हो जाने की प्रक्रिया) है।
महावीर जयंती महावीर को याद करने का अवसर है। इस दौरान जैन भक्तों द्वारा रथ पर भगवान की प्रतिमा को शहर की परिक्रमा कराने का विधान हैं। इस प्रकार से वे लोग महावीर जी द्वारा बताए गए जीवन के सार को लोगों तक पहुँचाते हैं।

परिचय- डॉ.अरविन्द जैन का जन्म १४ मार्च १९५१ को हुआ है। वर्तमान में आप होशंगाबाद रोड भोपाल में रहते हैं। मध्यप्रदेश के राजाओं वाले शहर भोपाल निवासी डॉ.जैन की शिक्षा बीएएमएस(स्वर्ण पदक ) एम.ए.एम.एस. है। कार्य क्षेत्र में आप सेवानिवृत्त उप संचालक(आयुर्वेद)हैं। सामाजिक गतिविधियों में शाकाहार परिषद् के वर्ष १९८५ से संस्थापक हैं। साथ ही एनआईएमए और हिंदी भवन,हिंदी साहित्य अकादमी सहित कई संस्थाओं से जुड़े हुए हैं। आपकी लेखन विधा-उपन्यास, स्तम्भ तथा लेख की है। प्रकाशन में आपके खाते में-आनंद,कही अनकही,चार इमली,चौपाल तथा चतुर्भुज आदि हैं। बतौर पुरस्कार लगभग १२ सम्मान-तुलसी साहित्य अकादमी,श्री अम्बिकाप्रसाद दिव्य,वरिष्ठ साहित्कार,उत्कृष्ट चिकित्सक,पूर्वोत्तर साहित्य अकादमी आदि हैं। आपके लेखन का उद्देश्य-अपनी अभिव्यक्ति द्वारा सामाजिक चेतना लाना और आत्म संतुष्टि है।

 

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