कुल पृष्ठ दर्शन : 237

You are currently viewing संभालने वाली नारी हो…

संभालने वाली नारी हो…

संजय एम. वासनिक
मुम्बई (महाराष्ट्र)
*************************************

अस्तित्व बनाम नारी (महिला दिवस विशेष)…

नारी,
सजती-संवरती…
पल-पल बदलती,
हर पल मचलती
जैसे धूप-छाँव
खुद से निखरती,
सजती-संवरती
बहती नदी-सी,
चट्टानों के घाव सहती…
फिर भी मासूम-सी दिखती,
प्यारे से फूलों जैसी सदा खिलती…
तुम नारी हो…।

दोस्तों में थोड़ी,
ज्यादा ही प्यारी…
सभी से ऋणानुबंध
रखने वाली,
किसी की ‘आक्की’
तो किसी की ‘काकी’,
किसी की ‘अम्मा’
किसी के लिए अनाम…
किसी की ‘माँ’ तो,
किसी की ‘बा’ हो
कोई तुम्हें कहे ‘बहन’…
तो कोई पुकारे ‘दीदी’,
किसी की ‘सखी’ हो
तो किसी की ‘प्रियतमा’।
रिश्ते प्यार के दिल में,
संभालने वाली नारी हो…
तुम नारी हो…॥