डॉ.अरविन्द जैन
भोपाल(मध्यप्रदेश)
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समाचार-पत्र में पढ़ने को मिला कि राष्ट्रीय चिकित्सा परिषद् द्वारा यह निर्णय लिया गया है कि अगले सत्र से चिकित्सा छात्रों को चरक शपथ लेना होगी। यह अत्यंत स्तुत्य कार्य है। वास्तव में देर आए,दुरुस्त आए। जब चिकित्सा क्षेत्र में अनेक पद्धति कार्यरत हैं,तो निःसंदेह आयुर्वेद निरापद चिकित्सा पद्धति है,जिसके लिए किसी से प्रमाण-पत्र लेने की जरुरत नहीं है। यह प्रयास बहुत उत्तम है,इस शपथ का पालन करना अनिवार्य होना चाहिए-शपथ में नहीं,कार्य क्षेत्र में।
चिकित्सा के ४ पद होते हैं-गुणवान वैद्य,गुणवान द्रव्य(औषधि ),गुणवान उपस्थाता(नर्सिंग स्टाफ ) और गुणवान रोगी। ऐसे ही शास्त्र का अच्छी प्रकार का ज्ञान रखना,अनेक बार रोगी-औषध-निर्माण तथा औषध प्रयोग का प्रत्यक्ष-द्रष्टा होना,दक्ष होना अर्थात समय के अनुसार कल्पना करने में चतुर होना और पवित्रता रखना; यह चारों वैद्य के उत्तम गुण माने जाते हैं। चिकित्सक बनने के लिए पहली शपथ है-चरक संहिता की शपथ,जो भारतीय सभ्यता के अन्तर्गत कराई जाती है। इसमें मूल रूप से आचार,विचार और सामाजिक विचारों को महत्व दिया जाता है।स्वस्थ जीवन के लिए चरक संहिता में उपाय है कि बारिश,गर्मी और सर्दी में भोजन की मात्रा,भोजन के प्रकार इत्यादि में बदलाव करके स्वस्थ रहा जा सकता है।
दूसरी हिप्पोक्रेटिक शपथ है,जिसमें पश्चिमी सभ्यता है। इस शपथ में मरीज के स्वास्थ्य पर बल देने की बात कही जाती है। चरक संहिता को ना सिर्फ भारतीय सभ्यता में अपितु पश्चिमी सभ्यता में भी सर्वश्रेष्ठ माना गया है।
प्राचीन काल में ही ऋषियों-मुनियों ने पर संबंधित बीमारियों को जाना,उपचार के उपाय भी खोजे। ये बात लगभग सभी जानते ही हैं कि शरीर की ९० फीसदी बीमारी की मुख्य वजह पर होती है। हमारे ऋषि-मुनि यह बात पहले से ही जानते थे,अतः उपचार भी खोज लिए थे। चरक संहिता में मान्यता है कि एक शिशु का ज्ञान गर्भ से ही प्रारम्भ हो जाता है। दोनों शपथ का मुख्य उद्देश्य समाज की भलाई और रोगों का उपचार ही है। दोनों का केंद्र विषय रोगियों की बेहतर से बेहतर चिकित्सा ही है।
इसके अलावा चिकित्सीय कार्य करने के लिए जिनके पास उचित शिक्षा नहीं है या उचित नैतिक चरित्र नहीं है,उनको इस पेशे में दाखिल नहीं होने देना चाहिए। ऐसे ही पेशे के अन्य सदस्यों के अनैतिक आचरण को उजागर करना चाहिए।
चिकित्सकों को सेवा देने से पहले अपनी फीस की घोषणा करनी चाहिए। एक चिकित्सक के व्यक्तिगत वित्तीय हितों को रोगी के चिकित्सा हितों के साथ संघर्ष नहीं करना चाहिए।
हालांकि,एक चिकित्सक उनके पास आने वाले हर मरीज का इलाज करने के लिए बाध्य नहीं है, लेकिन उन्हें हमेशा किसी बीमार और घायल के फोन का जवाब देने के लिए तत्पर रहना चाहिए। आपातकालीन स्थिति में उन्हें मरीजों का इलाज कर देना चाहिए। एक चिकित्सक को धैर्यवान और सहज होना चाहिए,तथा हर मरीज की गोपनीयता का सम्मान करना चाहिए। उसके द्वारा किसी भी मरीज को अनदेखा नहीं किया जाना चाहिए।
एक चिकित्सक का सबसे बड़ा और पहला शीर्ष गुण यही होना चाहिए कि वह सबसे पहले अपने मरीज को देखकर उसके मनोभावों को समझ सके और उसको यह विश्वास दिला सके कि आपकी जो भी बीमारी है वह उसको ठीक कर देगा। हमारे समाज में चिकित्सक को भगवान का दर्जा दिया गया है,इसलिए इतना बड़ा दर्जा पाने के साथ ही जिम्मेदारियां बहुत ही ज्यादा बढ़ जाती हैं,इसलिए एक चिकित्सक में शीर्ष गुण होने चाहिए।
एक सच्चे चिकित्सक को अपनी जिम्मेदारी पूरी कर्तव्यनिष्ठा के साथ उठानी चाहिए और पैसे का लालच नहीं होना चाहिए। उसे पूरी ईमानदारी के साथ लोगों की सेवा करना चाहिए। कोरोना काल में इस क्षेत्र ने अपनी प्रतिष्ठा शून्य की है,इसके लिए शपथ का पालन जरुरी है।
परिचय- डॉ.अरविन्द जैन का जन्म १४ मार्च १९५१ को हुआ है। वर्तमान में आप होशंगाबाद रोड भोपाल में रहते हैं। मध्यप्रदेश के राजाओं वाले शहर भोपाल निवासी डॉ.जैन की शिक्षा बीएएमएस(स्वर्ण पदक ) एम.ए.एम.एस. है। कार्य क्षेत्र में आप सेवानिवृत्त उप संचालक(आयुर्वेद)हैं। सामाजिक गतिविधियों में शाकाहार परिषद् के वर्ष १९८५ से संस्थापक हैं। साथ ही एनआईएमए और हिंदी भवन,हिंदी साहित्य अकादमी सहित कई संस्थाओं से जुड़े हुए हैं। आपकी लेखन विधा-उपन्यास, स्तम्भ तथा लेख की है। प्रकाशन में आपके खाते में-आनंद,कही अनकही,चार इमली,चौपाल तथा चतुर्भुज आदि हैं। बतौर पुरस्कार लगभग १२ सम्मान-तुलसी साहित्य अकादमी,श्री अम्बिकाप्रसाद दिव्य,वरिष्ठ साहित्कार,उत्कृष्ट चिकित्सक,पूर्वोत्तर साहित्य अकादमी आदि हैं। आपके लेखन का उद्देश्य-अपनी अभिव्यक्ति द्वारा सामाजिक चेतना लाना और आत्म संतुष्टि है।