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सदभाव,परस्पर प्रेम,शांति की नींव पर हो मंदिर निर्माण

राकेश सैन
जालंधर(पंजाब)
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कुरुक्षेत्र में भगवान श्रीकृष्ण का विराट रूप देख जैसे अर्जुन की आँखें चुंधिया गईं,जिव्हा निशब्द और हाथ-पांव शिथिल पड़ गए। लगभग वही स्थिति अयोध्या में श्रीराम मंदिर पर आया फैसला सुन मेरी हो रही है। मानो शब्दकोष सूख गया,मस्तिष्क और शरीर में कोई तालमेल नहीं बचा। सुन्न स्मृति में केवल शेष रह गए गोस्वामी तुलसीदास जिनके शब्दों की अंगुली थामे उन हुतात्माओं को नमन व्यक्त करना चाहता हूँ,जिन्होंने किसी भी रूप में देश के इस धार्मिक स्वतंत्रता आंदोलन रूपी यज्ञ में आहूति डाली। भक्तों का भगवान से कैसा संबंध है और भगवन किस भांति अपने दासों का आभार व्यक्त करते हैं,यह उन्हीं के शब्दों में व्यक्त करने की चेष्टा है। तुलसीकृत श्रीरामचरितमानस में सिंहासनरोहण के समय श्रीराम अपने सहयोगियों से कहते हैं-
तुम्ह अति कीन्हि मोरि सेवकाई।
मुख पर केहि बिधि करौं बड़ाई॥
ताते मोहि तुम्ह अति प्रिय लागे।
मम हित लागि भवन सुख त्यागे॥
अनुज राज संपति बैदेही।
देह गेह परिवार सनेही॥
सब मम प्रिय नहिं तुम्हहिं समाना।
मृषा न कहउँ मोर यह बाना॥

अर्थात-राजतिलक के समय अयोध्या आए सुग्रीव,अंगद,हनुमान,नल-नील,जाम्वंत, विभीषण,केवट सहित सभी वानर व दैत्य नरेशों को अपने पास बैठा कर श्रीराम कहते हैं कि तुम लोगों ने मेरी बड़ी सेवा की। मेरे लिए अपने घर, राज सिंहासन के सुख त्याग दिए। मुझे अपने छोटे भाई,परिवार,राज्य, सम्पत्ति,जानकी,अपना शरीर,मित्र सभी प्रिय हैं,परंतु तुम्हारे समान नहीं अर्थात रामभक्त राम को परिजनों से अधिक प्रिय लगे।
न तो मेरी इतनी स्मृति शेष है और न ही समूचित इतिहास ज्ञान कि राम मंदिर स्वतंत्रता आंदोलन में काम आए लोगों के नाम बता सकूं। यह लगभग सरजू के रज कण गिनने जितना दुरुह है,लेकिन अल्पज्ञान के अनुसार उन लोगों को अवश्य श्रद्धांजलि अर्पित करना चाहता हूँ जो रामकाज में काम आए। मुस्लिम आक्रमणकारी सालार मसूद ने साकेत अर्थात अयोध्या पर हमला कर मंदिर को ध्वस्त कर दिया। उसके वापसी जाते समय २१ जून,१०३३ को वीर राजा सुहेलदेव ने मसूद सहित उसकी सेना का इतना बेरहमी से संहार किया कि,एक सदी तक कोई भी मुस्लिम हमलावर भारत की तरफ मुँह करने की हिम्मत नहीं जुटा पाया। गढ़वाल वंशीय राजाओं ने पुन: राम मंदिर का निर्माण करवाया। १५३८ में बाबर के सेनापति मीर बाकी ने मंदिर विध्वंस किया। हिंदू समाज ने इसका इतना भयंकर प्रतिकार किया कि वह पूरी मस्जिद नहीं बनवा पाया,केवल ढांचा खड़ा कर सिर पर पाँव रख कर भागने को मजबूर हुआ। इस संघर्ष में हजारों हिंदू शहीद हुए। इसी तरह बाबर के समय भीटी नरेश महताब सिंह,हंसबर के राजगुरु देवीदीन पाण्डेय,राजा रणविजय सिंह,रानी जयराजकुमारी,हुमायूँ के समय साधुओं की सेना के साथ स्वामी महेशानंद जी,अकबर के समय स्वामी बलरामाचार्य जी,औरंगजेब के समय बाबा वैष्णवदास,कुंवर गोपाल सिंह, ठाकुर जगदम्बा सिंह,ठाकुर गजराज सिंह, नवाब सआदत अली के समय अमेठी के राजा गुरुदत्त सिंह,पिपरा के राजकुमार सिंह, नासिरुद्दीन हैदर के समय मकरही के राजा, वाजिदअली शाह के समय बाबा उद्धवदास जी तथा श्रीरामचरण दास,गोण्डा नरेश देवी बख्श सिंह,साधु समाज,स्वतंत्रता के उपरांत हुए संघर्ष के आंदोलनकारी,इसमें लगे संगठन,क्रूर मुलायमसिंह यादव सरकार के हाथों शहीद हुए कारसेवक,सभी पक्षकार, शुभचिंतक आज श्रीराम के अतिप्रिय लोगों में शामिल हैं। लाखों हिंदुओं ने मंदिर के लिए न केवल अपने प्राणों का त्याग किया बल्कि घर-बार,परिवार,मित्र,घर के सुखों का त्याग किया।
न्यायालय के इस निर्णय वाले दिन ९ नवम्बर, २०१९ को देश का धार्मिक स्वतंत्रता दिवस इसलिए कहना उचित होगा,क्योंकि मंदिर पर बना बाबरी ढांचा एक विदेशी हमलावर की जिद्द,अहंकार,नृशंसता का प्रतीक था। देशवासियों ने जहां शूरवीरता से इसका पराभाव किया,वहीं विधि व्यवस्था ने हिंदुओं के पक्ष को न्यायसंगत ठहराया। अब निर्णय आ चुका है और पूरे संघर्ष के दौरान पैदा हुई कटुता,विवादों,विरोध भाव का भी निस्तारण होना चाहिए। मंदिर निर्माण सदभाव,परस्पर प्रेम,शांति,स्नेह की नींव पर हो।
सब नर करहिं परस्पर प्रीती।
चलहिं स्वधर्म निरत श्रुति नीति॥
देशवासी परस्पर प्रीत करें,अपने-अपने धर्म अर्थात कर्तव्यों का निर्वहन करते हुए नियत विधि अनुसार जीवन यापन करें। समाज भविष्योन्मुखी हो राष्ट्र निर्माण में जुटे। राममंदिर बनने को है और अब अगला आंदोलन पूरे राष्ट्र व विश्व को मंदिर स्वरूप बनाने का चलना चाहिए। इन्हीं शब्दों के साथ सबको राम-राम।

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