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साहित्य क्या है ?

ओम अग्रवाल ‘बबुआ’
मुंबई(महाराष्ट्र)
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जिसमें मानव के दर्शन हो,
जो पावन पुण्य समर्पण हो।
जो संस्कार की बोली हो,
जो ताप निकंदन होली हो॥

जो वाहक हो परिपाटी का,
जो पूजन भारत माटी का।
जो मात-पिता का वंदन हो,
जो मलयागिरि-सा चंदन हो॥

जो गुरुओं का सम्मान करे,
जो परमपिता का ध्यान धरे।
जो बागों में फुलवारी में,
जो बच्चों की किलकारी में॥

जो हो बहनों की लज्जा में,
जो नेह-स्नेह की सज्जा में।
जो सत्य सदा बतलाता हो,
जो गीत सुमंगल गाता हो॥

जो किसान की आशा में,
जो जीवन की परिभाषा में।
जो सच्ची राह दिखाता हो,
जो रस्ता सहज सुझाता हो॥

जो नेह-स्नेह का सागर हो,
जो प्रीत भरी-सी गागर हो।
जो अपने वीर जवानों का,
जो धरतीपुत्र किसानों का॥

जो मान करे सम्मान करे,
जो अपनों पर अभिमान करे।
जो जाति-धर्म से ऊपर हो,
जो अपनों से भी बढ़कर हो॥

जो मानवता का दर्पण हो,
जो सच्चा सत्य समर्पण हो।
जो संस्कार के दावों में,
जो अन्तर्मन के भावों में॥

जो दीन-दुखी की आशा है,
जो जीवन की परिभाषा है।
जो परम्परा का प्रहरी है,
जो अनुपम भोर सुनहरी है॥

जो श्रीसंतों की झोली में,
जो नेह-स्नेह की बोली में।
जो गूँज सुनाई देती है,
जो प्रीत दिखाई देती है॥

जो गुलशन और बहारों में,
जो एकम और हजारों में।
जो कलम पूज्य हो जाती है,
जो खुद शारद हो जाती है॥

जो जीते में या हारे में,
जो सत्ता के गलियारे में।
जो सूरज चाँद सितारों में,
जो नजरों और नजारों में॥

जो नदिया सागर सब में है,
जो कण में है जो रब में है।
जो करुण दया का सागर है,
जो सच्चा सत्य उजागर है॥

जो दया धर्म की मूरत है,
जो प्रभु की सच्ची सूरत है।
जो खेत और खलिहानों में
जो अपने वीर किसानों में॥

जो बल पौरुष का स्वामी है,
जो खुद ही अन्तर्यामी है।
जो जोश है वीर जवानों का,
जो दर्पण है अरमानों का॥

जो समाज की सज्जा है,
जो अपने घर की लज्जा है।
जो नेह नयन का पानी है,
जो अनुपम एक कहानी है॥

जो गजलों और रुबाई में,
जो तुलसी की चौपाई में।
जो कबीर या दिनकर में,
जो बसता सकल चराचर में॥

जो मीरा और निराला है,
जो मस्जिद और शिवाला है।
जो मानव की पूजा है,
कोई और नहीं वो दूजा है॥

जो कण-कण पुण्य समर्पण है,
साहित्य वही है दर्पण है।
जो ऐसा धर्म निभाता है,
बस वो साहित्य कहाता है॥

परिचय-ओमप्रकाश अग्रवाल का साहित्यिक उपनाम ‘बबुआ’ है।आप लगभग सभी विधाओं (गीत, ग़ज़ल, दोहा, चौपाई, छंद आदि) में लिखते हैं,परन्तु काव्य सृजन के साहित्यिक व्याकरण की न कभी औपचारिक शिक्षा ली,न ही मात्रा विधान आदि का तकनीकी ज्ञान है।आप वर्तमान में मुंबई में स्थाई रूप से सपरिवार निवासरत हैं ,पर बैंगलोर  में भी  निवास है। आप संस्कार,परम्परा और मानवीय मूल्यों के प्रति सजग व आस्थावान तथा देश-धरा से अपने प्राणों से ज्यादा प्यार है। आपका मूल तो राजस्थान का झूंझनू जिला और मारवाड़ी वैश्य है,परन्तु लगभग ७० वर्ष पूर्व परिवार उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जिले में आकर बस गया था। आपका जन्म १ जुलाई को १९६२ में प्रतापगढ़ में और शिक्षा दीक्षा-बी.कॉम.भी वहीं हुई है। आप ४० वर्ष से सतत लिख रहे हैं।काव्य आपका शौक है,पेशा नहीं,इसलिए यदा-कदा ही कवि मित्रों के विशेष अनुरोध पर मंचों पर जाते हैं। लगभग २००० से अधिक रचनाएं आपने लिखी होंगी,जिसमें से लगभग ७०० का शीघ्र ही पाँच खण्डों मे प्रकाशन होगा। स्थानीय स्तर पर आप कई बार सम्मानित और पुरस्कृत होते रहे हैं। आप आजीविका की दृष्टि से बैंगलोर की निजी बड़ी कम्पनी में विपणन प्रबंधक (वरिष्ठ) के पद पर कार्यरत हैं। कर्नाटक राज्य के बैंगलोर निवासी श्री  अग्रवाल की रचनाएं प्रायः पत्र-पत्रिकाओं और काव्य पुस्तकों में  प्रकाशित होती रहती हैं। आपकी लेखनी का उद्देश्य-जनचेतना है।  

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