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सभी के साथ धर्म से परे समान व्यवहार जरूरी

गोपाल मोहन मिश्र
दरभंगा (बिहार)
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समान नागरिक संहिता…

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पहली बार समान नागरिक संहिता (यूनिफॉर्म सिविल कोड) पर खुलकर बात रखी और इससे अंदाजा लगाया जा रहा है कि सरकार जल्‍द ही इसको लेकर कानून ला सकती है। उनके अनुसार “परिवार में एक सदस्य के लिए एक कानून हो और दूसरे सदस्य के लिए दूसरा, तो क्या वो घर चल पाएगा ? अगर एक घर में २ कानून नहीं चल सकते, तो फिर एक देश में २ कानून कैसे चल सकते हैं ?”
संहिता के मुद्दे पर १४ जून से ही २२वें विधि आयोग ने प्रक्रिया शुरू कर दी है और इस पर सभी धर्मगुरुओं, सिविल सोसाईटिज, विधि विशेषज्ञ, राजनीतिक दलों और आम लोगों की राय १३ जुलाई तक मांगी जा रही है।
संहिता पर प्रधानमंत्री के बयान के बाद मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने आपात बैठक की और तय किया कि विधि आयोग के अध्यक्ष से मुलाकात कर एक मसौदा सौंपा जाएगा, जिसमें शरीयत के जरूरी हिस्सों का जिक्र होगा।
अब संहिता के बारे में विस्‍तार से समझने की कोशिश करते हैं।

◾क्‍या है संहिता-
इस संहिता का सीधा मतलब है-सभी नागरिकों के लिए समान कानून, फिर चाहे वो किसी भी धर्म, जाति या क्षेत्र से हों। इससे देश के सभी नागरिक समान रूप से प्रभावित होंगे। शादी-विवाह से लेकर तलाक, संपत्ति बंटवारे और बच्चा गोद लेने तक देश के सभी नागरिकों के लिए नियम-कानून एक समान होंगे।

◾संविधान में भी जिक्र-
देश की आजादी के बाद संविधान समिति के अध्यक्ष डॉ. भीमराव आम्बेडकर ने आईपीसी, सीआरपीसी, संपत्ति हस्तांतरण कानून, नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट का हवाला देते हुए कहा था कि, व्‍यवहारिक रूप से देश में समान नागरिक संहिता भी लागू हो।
अब बात करें संविधान की तो, नीति निर्देशक तत्वों में शामिल अनुच्छेद-४४ में सभी नागरिकों के लिए समान कानून लागू करने की बात कही गई है। इस अनुच्छेद का उद्देश्य संविधान की प्रस्तावना में ‘धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक गणराज्य’ के सिद्धांत का पालन करना है। बहरहाल स्थिति ये है कि, देश में सभी नागरिकों के लिए एक समान ‘आपराधिक संहिता’ तो है, लेकिन समान नागरिक कानून नहीं है।

◾हर धर्म के पर्सनल लॉ में एकरूपता-
थिंक टैंक सेंटर फॉर सिविल सोसाइटी से जुड़े लोकनीति के जानकार अविनाश चंद्र कहते हैं- “समान नागरिक संहिता का मतलब हर धर्म के पर्सनल लॉ में एकरूपता लाना है। फिलहाल देश में अलग-अलग धर्मों के लिए अलग-अलग पर्सनल लॉ हैं, जैसे हिंदुओं के लिए हिंदू कोड, मुसलमानों के लिए मुस्लिम पर्सनल लॉ। संहिता का अर्थ एक निष्पक्ष कानून होगा, जिसका किसी धर्म से कोई ताल्लुक नहीं होगा। संहिता लागू होने से हर धर्म के लिए एक जैसा कानून आ जाएगा, इसके तहत हर धर्म के कानूनों में सुधार और एकरूपता लाने पर काम होगा।”

◾लागू हुआ तो क्‍या असर ?-
उक्त संहिता लागू होने से हिंदुओं (बौद्ध, जैन, सिख, आदिवासी और अन्‍य) समेत मुसलमानों, ईसाइयों और पारसियों के सभी तरह के निजी कानून निरस्त हो जाएंगे। ये कोड लागू होता है, तो देशभर में सभी धर्मों के नागरिकों के लिए शादी, तलाक आदि को लेकर एक जैसे नियम-कानून होंगे। संहिता लागू होने से शादी की उम्र एक समान होगी।पंजीकरण के बिना शादी मान्‍य नहीं होगी। पंजीकरण नहीं कराने वाले परिवारों को सरकारी योजनाओं या सुविधाओं का लाभ नहीं मिल सकेगा। किसी भी धर्म के व्‍यक्ति को १ पत्‍नी के रहते ज्‍यादा शादी करने पर रोक लग जाएगी। तलाक के लिए भी पति और पत्‍नी दोनों को समान अधिकार मिलेंगे।
उत्तराधिकार के मामले में माता-पिता की संपत्ति में बेटा और बेटी को बराबर हक मिलेगा।

◾क्यों होता रहा विरोध ?-
वर्तमान परिप्रेक्ष्य में इस संहिता पर सबसे ज्‍यादा आपत्ति मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड को है। इसका विरोध करने वालों का कहना है कि ये सभी धर्मों पर हिंदू कानून को लागू करने जैसा है। बोर्ड की आपत्ति है कि, अगर सबके लिए समान कानून लागू कर दिया गया, तो ये उनके अधिकारों का हनन होगा।
फिलहाल पर्सनल लॉ के मुताबिक मुसलमानों को ४ शादियाँ करने का अधिकार है, जो समान नागरिक संहिता लागू होने के बाद नहीं रहेगा। उन्हें बीवी को तलाक देने के लिए कानून का पालन करना होगा। वे शरीयत के हिसाब से जायदाद का बंटवारा नहीं कर सकेंगे, बल्कि उन्हें संहिता का पालन करना होगा।

◾न्‍याय और विकास के लिए बेहतर-
उच्चतम न्यायालय के अधिवक्‍ता अश्विनी उपाध्याय कहते हैं-“हर धर्म के अलग-अलग कानूनों से न्यायपालिका पर बोझ पड़ता है। समान नागरिक संहिता देश की न्‍याय प्रणाली के लिए बेहतर साबित होगी। इसके आ जाने से देश की अदालतों में वर्षों से लंबित पड़े उन हजारों मामलों का निपटारा जल्‍दी होगा, जो पर्सनल लॉ के प्रावधानों के चलते अटके पड़े हैं।”
इस बात में कोई दो राय नहीं है कि जहाँ हर नागरिक समान हो, उस समाज, देश का विकास भी इससे प्रभावित होगा। बोर्ड को अपनी ओर से जो बात रखनी हो, वो सरकार के पास रख सकते हैं।
चूंकि, भारत की छवि एक धर्मनिरपेक्ष देश की है, ऐसे में कानून और धर्म का आपस में कोई लेना-देना नहीं होना चाहिए। सभी लोगों के साथ धर्म से परे जाकर समान व्यवहार लागू होना जरूरी है। यह संहिता आने से मुस्लिम महिलाओं की स्थिति बेहतर होगी।

◾कई देशों में लागू-
पड़ोसी देश पाकिस्तान और बांग्लादेश में समान नागरिक संहिता जैसा कानून लागू है। इनके अलावा मलेशिया, तुर्की, इंडोनेशिया, सूडान और मिस्र समेत कई देशों में इसी तरह के कानून लागू हैं। फ्रांस, इटली, ब्राजील और कनाडा की भी अपने समान नागरिक संहिता है।

◾गोवा भारत में अपवाद-
समान नागरिक संहिता लागू करने वाला इकलौता राज्य गोवा है। इस संहिता के मामले में गोवा भारत में अपवाद है। गोवा में काफी पहले से यह लागू है। संविधान में गोवा को विशेष राज्‍य का दर्जा प्राप्‍त है, साथ ही इस राज्‍य को ‘पुर्तगाली नागरिक संहिता’ लागू करने का अधिकार भी मिला हुआ है। यहाँ पर सभी धर्म और जाति के लोगों के लिए समान फैमिली लॉ लागू है। इसके मुताबिक सभी धर्म, जाति, संप्रदाय और वर्ग से जुड़े लोगों के लिए शादी, तलाक व उत्तराधिकार के कानून एक समान हैं।

परिचय–गोपाल मोहन मिश्र की जन्म तारीख २८ जुलाई १९५५ व जन्म स्थान मुजफ्फरपुर (बिहार)है। वर्तमान में आप लहेरिया सराय (दरभंगा,बिहार)में निवासरत हैं,जबकि स्थाई पता-ग्राम सोती सलेमपुर(जिला समस्तीपुर-बिहार)है। हिंदी,मैथिली तथा अंग्रेजी भाषा का ज्ञान रखने वाले बिहारवासी श्री मिश्र की पूर्ण शिक्षा स्नातकोत्तर है। कार्यक्षेत्र में सेवानिवृत्त(बैंक प्रबंधक)हैं। आपकी लेखन विधा-कहानी, लघुकथा,लेख एवं कविता है। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित हुई हैं। ब्लॉग पर भी भावनाएँ व्यक्त करने वाले श्री मिश्र की लेखनी का उद्देश्य-साहित्य सेवा है। इनके लिए पसंदीदा हिन्दी लेखक- फणीश्वरनाथ ‘रेणु’,रामधारी सिंह ‘दिनकर’, गोपाल दास ‘नीरज’, हरिवंश राय बच्चन एवं प्रेरणापुंज-फणीश्वर नाथ ‘रेणु’ हैं। देश और हिंदी भाषा के प्रति आपके विचार-“भारत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के शानदार नेतृत्व में बहुमुखी विकास और दुनियाभर में पहचान बना रहा है I हिंदी,हिंदू,हिंदुस्तान की प्रबल धारा बह रही हैI”

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