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समाज को संदेश देता है श्रीकृष्ण का जीवन

संदीप सृजन
उज्जैन (मध्यप्रदेश) 
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कृष्ण जन्माष्टमी स्पर्धा विशेष……….


हम जीवनभर एक गुरु की तलाश में रहते हैं,जो हमारा मार्ग दर्शन कर सके। जो हमें यह समझा सके कि,जीवन को सफल बनाने के लिए क्या किया जाए। हम सभी को एक ऐसे व्यक्ति की जरूरत महसूस होती है,जो हमें जीवन के बड़े फैसले लेने में मदद कर सके। तब एक ऐसा नाम हमारे सामने आता है जिसे शास्त्रों में जगत गुरु कहा गया है,वो है श्रीकृष्ण का। श्रीकृष्ण भारतीय वांग्मय में वो पूर्ण पुरुष है जिनसे परे कुछ भी नहीं है। वे विष्णु के आठवें अवतार होने से भगवान तो हैं ही,लेकिन एक साधारण मानव की तरह उन्होंने जीवन में हर घड़ी संकटों का सामना किया और हर स्थिति से अपने को उबाराl मनुष्य समाज का जीवन कैसे जीया जाए,यह बात स्वयं पर प्रयोग करके इन्होंने ही सिखाई। उनका जीवन अवतरण से लेकर बैकुंठ लोक प्रयाण तक कुछ न कुछ संदेश जरुर देता है,शायद इसलिए उनको जगत गुरु कहा गया है। श्रीकृष्ण के जीवन की बातें इस युग में भी उतनी ही महत्वपूर्ण हैं,जितनी द्वापर युग में थी। श्रीकृष्ण के जीवन की कुछ बातें ही हमारे जीवन को सफलता की आश्वस्ति देती है।

#संघर्ष में धैर्य रखें- श्रीकृष्ण के जन्म के पहले से ही मामा कंस उन्हें मारने के प्रयास कर रहा था,लेकिन वे श्रीहरि के अवतार थे और इस बात से भली-भांति परिचित थे कि,कंस मामा उन्हें क्षति पहुंचाने के लिए बारम्बार प्रयास कर रहे हैं। फिर भी वे शांत रहते थे और मथुरा नरेश के हर प्रहार का मुँह-तोड़ जवाब देते थे। उन्होंने कभी अपना धैर्य नहीं खोया,हर मोर्चे पर कंस के प्रयासों को असफल किया और योग्य समय पर अपनी शक्ति और सामर्थ को दिखाकर कंस को मार गिराया। श्रीकृष्ण का जीवन प्रारम्भ से ही संघर्ष के साथ धैर्य की सीख देता है। जब भी जीवन में समस्याएँ आएं,हर मोर्चे पर मुकाबला करें लेकिन अपने धैर्य को कभी न छोड़ें। धैर्य सफलता के शिखर पर ले जाने वाली महत्वपूर्ण सीढ़ी है। धैर्य के अभाव में कई बार सफलता असफलता के रुप में बदल जाती है। परेशानी कितनी भी बड़ी हो,धैर्य रखिएl एक समय ऐसा आएगा,आप परेशानी पर जीत हासिल कर ही लेंगे।

#समाज में सहज रहें- श्रीकृष्ण एक बड़े घराने के वारिस थे। गोकुल में भी वे राजा नंद के पुत्र थे और उन्हें राज-घराने के तौर तरीके से जीने का पूर्ण अधिकार था,किंतु वे गोकुल के अन्य बालकों की तरह ही रहते,उनके साथ खेलते,उनके साथ घूमते और उनके साथ ही भोजन करते। उन्होंने कभी किसी में कोई अंतर नहीं रखा। श्रीकृष्ण का यह स्वरूप सर्वाधिक चर्चा में रहता है। वे श्रीहरी के अवतार हैं,फिर भी वे सामान्य जीवन में बच्चों के साथ माखन चुराते हैं,बाल सुलभ शैतानियाँ करते है। वंशी बजाते हैं,गाय चराते हैं। बड़े होकर जब वे मथुरा चले गए,तब महल में रहते हुए भी उनमें राज-घराने का कोई घमंड ना आया। वे चेहरे पर सरल भाव रखते थे और अपनी प्रजा की हर जरूरत का ध्यान भी रखते थे। जीवन में सरलता का श्रीकृष्ण से बड़ा उदाहरण मिलना संभव नहीं वैभव,शक्ति और सामर्थ को जानते हुए भी समाज में सहज रहना और सबको सम्मान देना यह उनके जीवन की एक बड़ी विशेषता थी।

#निष्ठा के साथ कार्य करें- श्रीकृष्ण हर मोर्चे पर क्रांतिकारी विचारों के धनी रहे हैं। वे बंधी-बंधाई लीक पर नहीं चले। मौके की जरूरत के हिसाब से उन्होंने अपनी भूमिका बदलीl कभी पांडवों के दूत बने तो कभी अर्जुन के सारथी तक बने। जीवन को परिस्थिति के अनुरूप बनाना बहुत जरुरी है। जिस समय जो दायित्व मिले, उसे पूरे मन से करेंl काम कोई छोटा या बड़ा नहीं होता है। जीवन में अवसर का लाभ भी तभी मिलता है,जब हम कोई भी अवसर और कोई भी भूमिका मिले,उसे स्वीकारते चलें और निष्ठा के साथ कार्य को सम्पादित करें। श्रीकृष्ण ने गीता में कहा कि-“कर्म तो करना ही होगा। उससे पीछे नहीं हट जा सकता। यदि आप किसी दुविधा में उलझ गए हैं और आप कोई निर्णय नहीं ले पा रहे हैं,तो भी आपको निर्णय तो लेना ही होगा। इससे आप बच नहीं सकते या तो आप उस ओर जाऐंगे या फिर आप उस ओर नहीं जाऐंगे,मगर इस तरह से भी आप निर्णय जरूर लेंगे। हमें कभी भी किसी से हार नहीं माननी चाहिए। अंत तक प्रयास करते रहना चाहिए,भले ही परिणाम हमें हार के रूप में मिले,किंतु अगर हम प्रयास ही नहीं करेंगे,तो वह हमारी असली हार होगी।”

#मित्रता में आदर का भाव रखें- श्रीकृष्ण और सुदामा की दोस्ती को कौन नहीं जानता ? लेकिन यह दोस्ती महज दोनों के प्रेम के कारण नहीं,वरन् एक-दूसरे के प्रति आदर के कारण भी प्रसिद्ध है।आज के जमाने में दोस्ती के असली मायने कोई नहीं जानता। आज जब तक दोस्त से मतलब निकल रहा है,तब तक वह बहुत अच्छा है,लेकिन जब वह किसी काम को करने में असमर्थ हो जाए,तो लोग उससे दूरी बनाने लगते हैं,किंतु श्रीकृष्ण ऐसे नहीं थे। उन्होंने वर्षों बाद अपने महल की चौखट पर आए गरीब सुदामा को भी अपने गले से लगाया।उसका स्वागत किया,स्वयं अपने हाथों से सुदामा के पाँव धोए,उन्हें इतना आदर-सत्कार दिया कि,इस दृश्य को देखने वाला हर एक इंसान चकित था। श्रीकृष्ण एवं सुदामा की मित्रता,जहां बिन बोले ही सब समझ लिया गया था। ऐसी मित्रता में अपार प्रेम और सम्मान होता है।

#ईश्वर के प्रति समर्पित रहें- श्रीकृष्ण कहते हैं कि,जब आप अपने किसी कार्य को ईश्वर को समर्पित करते हैं,तो उसमें सफलता मिलती ही है, क्योंकि सफलता के प्रति आपमें विश्वास का भाव आता है और उस कार्य को आप पूर्णता से करते हैंl ऐसे में वह सफल होता है। उस कार्य के प्रति कुछ न करने का भाव आपमें बड़प्पन लाता हैl ऐसे में आप कर्म करते हुए भी अकर्ता के भाव को आत्मसात करते हैं,जो सफलता की आश्वस्ति हैl श्रीकृष्ण का जीवन कई गहरे संदेश देता है। श्रीकृष्ण सभी कलाओं में निपुण थे। उन्होंने सभी को जीवन में पूर्णता का संदेश दिया था। यही नहीं,श्रीकृष्ण ने श्रीमद्भगवद गीता में वेदों और जीवन का सार समाहित किया है। वे सच में जगत गुरु हैं,उनका कोई पर्याय नहीं है। इसीलिए,कहा जाता है-कृष्णं वन्दे जगत गुरुं।

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