इंदौर (मप्र)।
कविता से आमजन का मोह भंग हो गया, इसलिए लघुकथा ही आज समाज में क्रांति लाने की शक्ति रखती है। अति बौद्धिकता या क्लिष्ट शिल्प से लघुकथा कहीं कविता की तरह आमजन से दूर ना हो जाए, इसका ध्यान रखकर प्रयोग किए जाने चाहिए।
वरिष्ठ लघुकथाकार डॉ.(प्रो.) योगेंद्रनाथ शुक्ल ने श्री कमलचंद वर्मा स्मृति मासिक लघुकथा गोष्ठी में यह बात कही। वरिष्ठ लघुकथाकार एवं सम्पादक योगराज प्रभाकर ने कहा कि, लघुकथा पाँच लाइन से प्रभावशाली बनती है। लघुकथा गरीब के मासिक बजट की तरह होती है। लेखक को शब्दों का चयन करते समय इसी तरह की सोच अपेक्षित है।
गोष्ठी में देशभर के लघुकथाकारों ने रचनापाठ किया। डॉ. सपना साहू ‘स्वप्निल’, निवेदिता श्रीवास्तव, निर्मला कर्ण, सिद्धेश्वर जी व मधु पांडे आदि ने लघुकथा का वाचन किया। विशेष अतिथि ‘तर्पण’ (पटना) अख़बार के सम्पादक सिद्धेश्वर जी एवं समीक्षक संदीप तोमर रहे। श्रोताओं में भुवनेश दशोत्तर, सुधाकर मिश्रा, अमिता मराठे, विजय सिंह चौहान और अर्चना लवानिया आदि प्रमुख रहे।
अतिथि परिचय संस्था के अध्यक्ष अजय वर्मा ने दिया। संचालन निशा भास्कर ने किया। आभार सोनाली खरे ने माना।