गोवर्धन दास बिन्नाणी ‘राजा बाबू’
बीकानेर(राजस्थान)
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सहज व सुलभ उपलब्ध सामाजिक संचार माध्यम (सोशल मीडिया) ने सभी क्षेत्रों में क्रान्तिकारी उथल-पुथल मचा रखी है। इससे साहित्य जगत भी अछूता नहीं है। आजकल साहित्य सृजन को प्रसारित करने में यह माध्यम न केवल प्रभावी तरीका बन चुका है, बल्कि शीघ्रातिशीघ्र पाठकों तक पहुँच बनाने में भी आगे है।
एक नया तथ्य यह भी देखने में आया कि जो भी, सामाजिक संचार माध्यम को किसी भी कारणवश न अपना पाए थे, तब सभी क्षेत्रों से ऐसे व्यक्तियों को सलाह दे, इसे अपना लेने के लगातार निवेदन के चलते परिणामस्वरूप आज सभी ने न केवल इसे अपना लिया, सीख लिया, बल्कि इसका भरपूर लाभ उठा रहे हैं।
कागजों की कीमत दिन-प्रतिदिन बढ़ ही रही है, जिससे पुस्तक प्रकाशन के साथ अखबार प्रकाशन में काफी गिरावट स्पष्ट परिलक्षित हो रही है। इसलिए पत्रिकाएं हों या अखबार, सभी का पीडीएफ सामाजिक संचार माध्यम से एकसाथ हजारों पाठकों को समयबद्धता के साथ कड़ी (लिंक) से सांझा किया जाना आम बात हो गई है।
एक तथ्य यह भी है कि, साधारण नागरिक हर विषय पर अपने विचार बिना आगे-पीछे सोचे सामाजिक संचार माध्यम से व्यक्त कर रहे हैं। इसके जितने दुष्प्रभाव देखने को मिल रहे हैं, उससे कहीं ज्यादा सकारात्मक प्रभाव ने भी अनेक विशेषज्ञों को चौंकाया है। यही सब कारण है कि, सभी सरकारें सामाजिक संचार माध्यम को नियन्त्रित करने की बजाय स्वयं ही इसे प्रभावी तरीके से उपयोग की नई-नई प्रणाली को अपनाने की योजना बना लाभ उठाने की पुरजोर कोशिशों में कार्यरत हैं।
कुल मिलाकर सामाजिक संचार माध्यम अब हमारे सामाजिक ही नहीं, बल्कि राष्ट्रीय-अन्तर्राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में अति महत्वपूर्ण कड़ी बन गई है।इसका सही उपयोग होता रहे, यह हम सबकी सामूहिक जिम्मेदारी है। इसलिए, जो भी इसका दुरुपयोग करता परिलक्षित हो तो, उसको रोकने में सरकार या सामाजिक संचार संस्था जो भी कदम उठाए, उनके साथ सहयोग करते हुए उस अनुरूप हमें व्यवहार करना चाहिए।