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सुखद सुनहरी धूप

डॉ.राम कुमार झा ‘निकुंज’
बेंगलुरु (कर्नाटक)

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शुभ प्रभात सादर नमन, मंगलमय शुभकाम।
सुनहर पूसी अरुणिमा, धूप सुखद अभिराम॥

नव पल्लव तरु वाटिका, विविध चारुतम रंग।
महके खुशबू चहुँ धरा, लतिका सुभग लवंग॥

प्रमुदित प्राणी लोक में, नवप्रभात अरुणाभ।
गूंजी चहुँ ध्वनि विहग गण, भोर धूप बहु लाभ॥

अतिरंजित नभ लालिमा, कुसुमाकर आलोक।
तन-मन आनंदित मनुज, मिटे क्लेश हिय शोक॥

सुर पंचम पिक काकली, चारु ललित चितचोर।
कोयल बासन्तिक लता, करती कू-कू शोर॥

मन माधव मधु माधवी, खिले मालती फूल।
सुनहर पल सर्दी किरण, शारीरिक अनुकूल॥

मन्द-मन्द बहती हवा, सागर सप्त तरंग।
बड़े दिन सर्दी सुखद, स्वर्णिम धूप उमंग॥

मास दिसम्बर-जनवरी, शीताकुलित तुषार।
धूप भोर की सुनहरी, करे ठंड उद्धार॥

दीन दयालु धूप यह, गेह वसन बिन दीन।
धूप सुनहरी भोर दे, राहत ठंडक छीन॥

शान्ति मिले जेसस कृपा, क्रिसमस शुभ त्यौहार।
अन्त दिसम्बर सुखद क्षण, नवल वर्ष उपहार॥

कवि ‘निकुंज’ रब काकिली, गूंजे भारत गान।
खिले प्रेम समरस कली, सुरभि शान्ति यश मान॥

लहराये नीलाभ में, भारत शान तिरंग।
शौर्य प्रगति सौहार्द्र से, गूंजे कीर्ति विहंग॥

सुनहर यौवन लसित मन, राजधर्म अभिप्रेत।
बलिदानी जयकार हो, चहुँ हरियाली खेत॥

मधुरिम वासन्तिक कुसुम, सुरभित हो संसार।
नीति प्रीति सम्प्रीति जग, फैले सुरभि बहार॥

ललित लसित अरुणिम किरण, सुखद सुनहरी धूप।
समतामय जग प्रेरणा, दीन धनी या भूप॥

परिचय-डॉ.राम कुमार झा का साहित्यिक उपनाम ‘निकुंज’ है। १४ जुलाई १९६६ को दरभंगा में जन्मे डॉ. झा का वर्तमान निवास बेंगलुरु (कर्नाटक)में,जबकि स्थाई पता-दिल्ली स्थित एन.सी.आर.(गाज़ियाबाद)है। हिन्दी,संस्कृत,अंग्रेजी,मैथिली,बंगला, नेपाली,असमिया,भोजपुरी एवं डोगरी आदि भाषाओं का ज्ञान रखने वाले श्री झा का संबंध शहर लोनी(गाजि़याबाद उत्तर प्रदेश)से है। शिक्षा एम.ए.(हिन्दी, संस्कृत,इतिहास),बी.एड.,एल.एल.बी., पीएच-डी. और जे.आर.एफ. है। आपका कार्यक्षेत्र-वरिष्ठ अध्यापक (मल्लेश्वरम्,बेंगलूरु) का है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत आप हिंंदी भाषा के प्रसार-प्रचार में ५० से अधिक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय साहित्यिक सामाजिक सांस्कृतिक संस्थाओं से जुड़कर सक्रिय हैं। लेखन विधा-मुक्तक,छन्दबद्ध काव्य,कथा,गीत,लेख ,ग़ज़ल और समालोचना है। प्रकाशन में डॉ.झा के खाते में काव्य संग्रह,दोहा मुक्तावली,कराहती संवेदनाएँ(शीघ्र ही)प्रस्तावित हैं,तो संस्कृत में महाभारते अंतर्राष्ट्रीय-सम्बन्धः कूटनीतिश्च(समालोचनात्मक ग्रन्थ) एवं सूक्ति-नवनीतम् भी आने वाली है। विभिन्न अखबारों में भी आपकी रचनाएँ प्रकाशित हैं। विशेष उपलब्धि-साहित्यिक संस्था का व्यवस्थापक सदस्य,मानद कवि से अलंकृत और एक संस्था का पूर्व महासचिव होना है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-हिन्दी साहित्य का विशेषकर अहिन्दी भाषा भाषियों में लेखन माध्यम से प्रचार-प्रसार सह सेवा करना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-महाप्राण सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ है। प्रेरणा पुंज- वैयाकरण झा(सह कवि स्व.पं. शिवशंकर झा)और डॉ.भगवतीचरण मिश्र है। आपकी विशेषज्ञता दोहा लेखन,मुक्तक काव्य और समालोचन सह रंगकर्मी की है। देश और हिन्दी भाषा के प्रति आपके विचार(दोहा)-
स्वभाषा सम्मान बढ़े,देश-भक्ति अभिमान।
जिसने दी है जिंदगी,बढ़ा शान दूँ जान॥ 
ऋण चुका मैं धन्य बनूँ,जो दी भाषा ज्ञान।
हिन्दी मेरी रूह है,जो भारत पहचान॥