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सुनो प्रार्थना माँ

मीरा सिंह ‘मीरा’
बक्सर (बिहार)
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जय माँ अम्बे सब सुखदायनी
सुनो प्रार्थना माँ,
अखिल विश्व में सुख शांति की करो स्थापना माँ।

पल-पल बढ़ता अत्याचार है,
मचा चहुंओर हाहाकार है
जो अपने पथ से हैं भटके,
राह दिखाओ माँ…।

त्राहि-त्राहि मची जगत में,
तेरी सूरत दिखे न सबमें
छाया है घनघोर अंधेरा,
करो उजाला माँ…।

चहुँओर आज भुखमरी है,
सहमी-सहमी यह नगरी है
डरे हुए हैं लोग सभी ये,
करो करिश्मा माँ…।

माँ से बिछड़े अबोध बालक,
जमींदोज हैं जिनके पालक
दया करो माँ हर अनाथ पर,
बनो सहारा माँ…।

कह ना पायी बातें मुख से,
सुन लेना उसको भी माँ।
देर करो मत आ भी जाओ,
दया करो हे माँ…॥

परिचय-बक्सर (बिहार) निवासी मीरा सिंह का साहित्यिक उपनाम ‘मीरा’ है। १ अगस्त १९७२ को ग्राम-नसरतपुर (जिला-आरा, बिहार) में जन्मीं और वर्तमान में डुमराँव (बक्सर) में बसेरा है। आपको भाषा ज्ञान-हिन्दी, अंग्रेजी और भोजपुरी का है तो पूर्ण शिक्षा एम.ए. और बी.एड. है। कार्यक्षेत्र- सरकारी विद्यालय में मनोविज्ञान विषय में शिक्षक का है। सामाजिक गतिविधि में लोगों में जागरूकता लाने वाले कार्यक्रमों में सहभागिता है। कहानी, लघुकथा, कविता और व्यंग्य लेखन आपकी विधा है। प्रकाशन के अंतर्गत अब तक ४ किताबें (अहसासों की कतरन- काव्य संग्रह, बचपन की गलियाँ-बाल काव्य संग्रह, कुर्सी और कोरोना-व्यंग्य संकलन एवं बच्चों की दुनिया-बाल काव्य संग्रह) प्रकाशित हैं। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में करीब ३० साल से आपकी रचनाएँ प्रकाशित हो रही हैं। लेखनी को प्राप्त सम्मान-पुरस्कार देखें तो विद्यावाचस्पति सम्मान, श्रीमती सरला अग्रवाल स्मृति सम्मान, डॉ. राजेन्द्र प्रसाद शिक्षक शिरोमणि पुरस्कार (पटना), अपराजिता सम्मान २०१८ और २०२३, पाती लेखन प्रतियोगिता में प्रथम पुरस्कार, बाल साहित्य शोध संस्थान (दरभंगा) द्वारा रामवृक्ष बेनीपुरी शिखर सम्मान व बाल कहानी प्रतियोगिता में प्रथम के अतिरिक्त अन्य पुरस्कार-सम्मान आपको मिले हैं। निःस्वार्थी, कर्मठ और संवेदनशील शिक्षक-साहित्यकार के रूप में चर्चित होना इनकी उपलब्धि है। मीरा सिंह ‘मीरा’ की लेखनी का उद्देश्य दुनिया को खूबसूरत बनाने की कोशिश, दबे-कुचले लोगों की आवाज बनना, आने वाली पीढ़ी में समझ विकसित करके योग्य नागरिक बनने में सहयोग करना हैं। मुंशी प्रेमचंद, महादेवी वर्मा और साहिर लुधियानवी पसंदीदा हिन्दी लेखक हैं तो आसपास का माहौल, सामाजिक विद्रूपताएं, विषम परिस्थितियाँ और प्रकृति में घटित घटनाएं प्रेरणापुंज हैं। ‘मीरा’ की विशेषज्ञता अनकही बातों को समझने में कभी चूक नहीं होना व किसी की पीड़ा समझने व महसूसने का ईश्वरीय वरदान है। आपका जीवन लक्ष्य-समाज में मिले हर किरदार को शानदार ढंग से निभाते हुए जागरूक, सुसंस्कृत और संवेदनशील समाज बनाने में अहम भूमिका निभाना है। देश और हिंदी भाषा के प्रति विचार-“फ़ौजी परिवेश में पली-बढ़ी हूँ। देश मुझे जान से प्यारा है और हिंदी तो मेरी माँ जैसी है। इसके प्रचार-प्रसार के लिए जितना भी करूं, जो भी करूं, कम होगा। भाषा के रूप में हिंदी मैट्रिक तक ही पढ़ी है, पर लेखन हिंदी में करती हूँ, क्योंकि हिंदी मेरे हृदय की भाषा है।”