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स्वर कोकिला फिर आओ ना…

उमेशचन्द यादव
बलिया (उत्तरप्रदेश) 
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सुरों की अमर ‘लता’ विशेष-श्रद्धांजलि…..

मंद हुई है स्वर की नगरी,आकर गति बढ़ाओ ना,
हैं उदास तेरे चाहने वाले,स्वर कोकिला फिर आओ ना…।

गीत-संगीत में प्राण फूँके तुमने,फिर से कुछ गुनगुनाओ ना,
हैं उदास तेरे चाहने वाले,स्वर कोकिला फिर आओ ना…।

तुम बिन जग ये सूना लागे,कुछ गाकर मन हरषाओ ना,
हैं उदास तेरे चाहने वाले,स्वर कोकिला फिर आओ ना…।

ज़माने ने दिए ज़ख़्म कितने,हमें भी कुछ फ़रमाओ ना,
हैं उदास तेरे चाहने वाले,स्वर कोकिला फिर आओ ना…।

राज़ कितने छिपे हैं संगीत के,खोलकर उन्हें फड़काओ ना,
हैं उदास तेरे चाहने वाले,स्वर कोकिला फिर आओ ना…।

श्रद्धासुमन अर्पित है जोगन,तुम हँसकर उसे अपनाओ ना,
हैं उदास तेरे चाहने वाले,स्वर कोकिला फिर आओ ना…।

तरु संगीत का तुमने पाला,फल लगे हैं आकर खाओ ना,
हैं उदास तेरे चाहने वाले,स्वर कोकिला फिर आओ ना…।

कहे ‘उमेश’ हे सुरों की रानी,सुर में मेरे बस जाओ ना,
हैं उदास तेरे चाहने वाले,स्वर कोकिला फिर आओ ना…॥

परिचय–उमेशचन्द यादव की जन्मतिथि २ अगस्त १९८५ और जन्म स्थान चकरा कोल्हुवाँ(वीरपुरा)जिला बलिया है। उत्तर प्रदेश राज्य के निवासी श्री यादव की शैक्षिक योग्यता एम.ए. एवं बी.एड. है। आपका कार्यक्षेत्र-शिक्षण है। आप कविता,लेख एवं कहानी लेखन करते हैं। लेखन का उद्देश्य-सामाजिक जागरूकता फैलाना,हिंदी भाषा का विकास और प्रचार-प्रसार करना है।

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