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स्वार्थ

दिनेश चन्द्र प्रसाद ‘दीनेश’
कलकत्ता (पश्चिम बंगाल)
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मनुष्य कितने स्वार्थी होते हैं,
ये हम सब भी नहीं जानते हैं।

घर में बेटा पैदा हो तो खुश होते हैं,
घर में बेटी पैदा हो तो दुखी होते हैं।

गाय को बछिया पैदा हो तो खुश होते हैं,
गाय को बछड़ा पैदा हो तो दुखी होते हैं।

दामाद, बेटी को माने तो हीरा होता है,
बेटा, बहू को माने तो बिगड़ा होता है।

बहू, अगर सास को माने तो लक्ष्मी होती है,
बहू, सास को ना माने तो कुलक्षनी होती है।

सास, बहू को माने तो माँ जी होती है,
सास, बहू को ना माने तो बुढ़िया होती है।

ससुर, दामाद को सब-कुछ दे दे तो बाबूजी होते हैं,
अगर थोड़ा-बहुत दें तो पत्नी के बाप होते हैं।

अच्छा काम करके भी जो,
किसी से नहीं कहते वे महान होते हैं।
थोड़ा करके जो ढोल पीटते हैं,
वो लोग ओछे होते हैं।

इधर-उधर की बातों में जो लोगों को भरमाते हैं,
वह चालाक कहलाते हैं।
जो चुप रहते कुछ नहीं कहते हैं,
वह तो बुद्धू कहलाते हैं॥

परिचय– दिनेश चन्द्र प्रसाद का साहित्यिक उपनाम ‘दीनेश’ है। सिवान (बिहार) में ५ नवम्बर १९५९ को जन्मे एवं वर्तमान स्थाई बसेरा कलकत्ता में ही है। आपको हिंदी सहित अंग्रेजी, बंगला, नेपाली और भोजपुरी भाषा का भी ज्ञान है। पश्चिम बंगाल के जिला २४ परगाना (उत्तर) के श्री प्रसाद की शिक्षा स्नातक व विद्यावाचस्पति है। सेवानिवृत्ति के बाद से आप सामाजिक कार्यों में भाग लेते रहते हैं। इनकी लेखन विधा कविता, कहानी, गीत, लघुकथा एवं आलेख इत्यादि है। ‘अगर इजाजत हो’ (काव्य संकलन) सहित २०० से ज्यादा रचनाएं विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं। आपको कई सम्मान-पत्र व पुरस्कार प्राप्त हुए हैं। श्री प्रसाद की लेखनी का उद्देश्य-समाज में फैले अंधविश्वास और कुरीतियों के प्रति लोगों को जागरूक करना, बेहतर जीवन जीने की प्रेरणा देना, स्वस्थ और सुंदर समाज का निर्माण करना एवं सबके अंदर देश भक्ति की भावना होने के साथ ही धर्म-जाति-ऊंच-नीच के बवंडर से निकलकर इंसानियत में विश्वास की प्रेरणा देना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-पुराने सभी लेखक हैं तो प्रेरणापुंज-माँ है। आपका जीवन लक्ष्य-कुछ अच्छा करना है, जिसे लोग हमेशा याद रखें। ‘दीनेश’ के देश और हिंदी भाषा के प्रति विचार-हम सभी को अपने देश से प्यार करना चाहिए। देश है तभी हम हैं। देश रहेगा तभी जाति-धर्म के लिए लड़ सकते हैं। जब देश ही नहीं रहेगा तो कौन-सा धर्म ? देश प्रेम ही धर्म होना चाहिए और जाति इंसानियत।