नताशा गिरी ‘शिखा’
मुंबई(महाराष्ट्र)
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कारगिल विजय दिवस स्पर्धा विशेष……….
चलो आज फिर यादें ताज़ा कर जाते हैं,
पाकिस्तान के धोखे की कहानी,
नापाक मांग कश्मीर की जुबानी सुनाते हैं।
वो वादियां थी कारगिल की सुहानी,
जब खून भी सूख के हो जाए पानी।
४७.५ तापमान की डिग्री फिर नहीं लगती लुभावनी,
चलो बताते हैं पाकिस्तान की मनमानी।
इक चरवाहे की निगाह पड़ी थी,
घुसपैठियों की कार्रवाई बड़ी थी।
कारगिल की सड़कों पे वो पूरी तरह से हावी थे,
भारतीय खुफिया एजेंसियां मान रहीं थीं खुद को,
वो मेधावी थी।
१८ हजार फीट की ऊंचाई पर वो खड़े हुए थे,
भारत की सेना फिर बाँध कफन सर पर,
बाँधे ज़िद ले के अड़े हुए थे।
इक के बदले में हम सत्ताइस खो देंगे,
इस बात से नहीं अनजान थे
अपना कर्ज उतारेंगे हर घाटी पर तिरंगा लहराएंगें,
बस इस बात का अभिमान था।
बात की थी गीदड़वाली,मुशर्रफ की थी चाल निराली,
सियाचिन की घाटी में भारत ने पर फैलाए थे
बस यही बात पाकिस्तान को नहीं भायी थी।
देखो कैसा षडयंत्र रचा था,
लाहौर में वो हाथ मिला कर
कारगिल में सर धड़ से
ले जाने के फेर में खड़ा था।
उन दिन फौजियों में प्रसिध्द ये कहानी है,
पहाड़,सेना को खा जाता है,यूँ ही नहीं लगती सुहानी है।
६०० सैनिक शहीद हुए थे,
१५०० सैनिक माटी में मिल जाने को जूझ रहे थे।
भारतीय सेना ने जब पाक पर ढाई लाख गोले दाग़े थे,
तब जा के कहीं पाकिस्तान रेजन्सी बटालियन से भागे थे।
टाईगर हिल,जुगर हिल,तोलोलिंग पर,
यूँ ही नहीं हुआ फिर से कब्जा
२ लड़ाकू विमान,१ हैलिकॉप्टर भारत ने खोया था।
२६ जुलाई इस युद्ध का अन्त हुआ था,
नवभारत का आरंभ हुआ था।
आपरेशन विजय
के नाम पर प्रसिध्द ये कहानी है,
जज़्बा तुम जिन्दा रखो
और फिर भिड़ जाना..
जब कभी ऐसी हालत हो कुछ,कहानी दुहरानाll
परिचय-नताशा गिरी का साहित्यिक उपनाम ‘शिखा’ है। १५ अगस्त १९८६ को ज्ञानपुर भदोही(उत्तर प्रदेश)में जन्मीं नताशा गिरी का वर्तमान में नालासोपारा पश्चिम,पालघर(मुंबई)में स्थाई बसेरा है। हिन्दी-अंग्रेजी भाषा का ज्ञान रखने वाली महाराष्ट्र राज्य वासी शिखा की शिक्षा-स्नातकोत्तर एवं कार्यक्षेत्र-चिकित्सा प्रतिनिधि है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत लोगों के शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य की भलाई के लिए निःशुल्क शिविर लगाती हैं। लेखन विधा-कविता है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-जनजागृति,आदर्श विचारों को बढ़ावा देना,अच्छाई अनुसरण करना और लोगों से करवाना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-मुंशी प्रेमचंद और प्रेरणापुंज भी यही हैं। विशेषज्ञता-निर्भीकता और आत्म स्वाभिमानी होना है। देश और हिंदी भाषा के प्रति विचार-“अखण्डता को एकता के सूत्र में पिरोने का यही सबसे सही प्रयास है। हिन्दी को राष्ट्रीय भाषा घोषित किया जाए,और विविधता को समाप्त किया जाए।”