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परदेशी सैयां

नताशा गिरी  ‘शिखा’ 
मुंबई(महाराष्ट्र)
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सैयां जी……..ओ सैयां जी,
याद आए तेरी बतियां,बीती रतियां।
कहती हैं सखियाँ,जोगन बनी क्यूँ,
प्रेम दिवानी,आँखों में तेरी कैसा है पानी।
होंठों की लाली हाय! किसने चुराई,
हाथों की मेहंदी ऐसे फ़ीकी पड़ी क्यूँ।
क्या मैं कहूँ जी बोलो न! ओ सैयां जी॥

मिलो जो मुझसे,कह दूँ तुमसे,
ख़्वाबों में न आना,न नींदें चुराना।
मुझको न यूँ तुम जोगन बनाना,
अँखियों मे मेरे न सपने जगाना।
जाना है परदेश ओ! जाने जाना,
अब तो मुझको अपने संग ले जाना।
सुनो न…………….ओ सैयां जी॥

तन्हा-तन्हा रातें,सूनी-सूनी बातें,
चलती पुरवईया,पूछे तेरी बतियां।
हँसती है सखियाँ,देखो बौरा गई मैं,
हाय! शरमा गई,हाँ घबरा गई मैं।
घूँघट में मुखड़ा,कहें जुदाई दुखड़ा,
अब न कहूँगी ओ मेरे सैयां जी।
सुनो न…………….ओ सैयां जी॥

देखो चाँद का टुकड़ा,चाँदनी बिखरे,
अँखियों से बोले,राज़ तेरे खोले।
चुपके से तेरे सपनों मे जा के बोले,
करना न मुझसे अब कोई शरारत।
कहती हूँ तुझसे अब न यूँ तड़पाना,
जाओ अब न कहूँगी ओ मेरे सैयां जी।
सुनो न…………….ओ सैयां जी॥

परिचय-नताशा गिरी का साहित्यिक उपनाम ‘शिखा’ है। १५ अगस्त १९८६ को ज्ञानपुर भदोही(उत्तर प्रदेश)में जन्मीं नताशा गिरी का वर्तमान में नालासोपारा पश्चिम,पालघर(मुंबई)में स्थाई बसेरा है। हिन्दी-अंग्रेजी भाषा का ज्ञान रखने वाली महाराष्ट्र राज्य वासी शिखा की शिक्षा-स्नातकोत्तर एवं कार्यक्षेत्र-चिकित्सा प्रतिनिधि है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत लोगों के शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य की भलाई के लिए निःशुल्क शिविर लगाती हैं। लेखन विधा-कविता है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-जनजागृति,आदर्श विचारों को बढ़ावा देना,अच्छाई अनुसरण करना और लोगों से करवाना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-मुंशी प्रेमचंद और प्रेरणापुंज भी यही हैं। विशेषज्ञता-निर्भीकता और आत्म स्वाभिमानी होना है। देश और हिंदी भाषा के प्रति विचार-“अखण्डता को एकता के सूत्र में पिरोने का यही सबसे सही प्रयास है। हिन्दी को राष्ट्रीय भाषा घोषित किया जाए,और विविधता को समाप्त किया जाए।”

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