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हर जिन्दगी को लहू की जरूरत…

हीरा सिंह चाहिल ‘बिल्ले’
बिलासपुर (छत्तीसगढ़)

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लहू बनाम जिन्दगी….

हर जिन्दगी को लहू की जरूरत, लहू से मिली जिन्दगी,
हर साँस-धड़कन लहू से ही चलती, लहू से पली जिन्दगी।

हर जिन्दगी बन सके एक दाता, लहू दान करके यहां,
मुझको मिला दान में है लहू भी, तभी जी रहा हूँ यहां।
सौभाग्य से उस विधाता के दानी, मुझे जिन्दगी में मिले,
उनके लहू दान से जी रहा हूँ, मुझे फिर मिली जिन्दगी॥

होती अलग किस्म हर इक लहू की, पहचान मुश्किल बड़ी,
जैसे बदल कर मिले जिन्दगी भी जहां हो जरूरत खड़ी।
कर्मों से सजता हर एक जीवन, सजाकर ही रखना इसे,
फिर तो लहू भी पिता सा मिले सज ले जिससे भली जिन्दगी॥

किसको बुरे कर्म दिखते हैं खुद के, ये सारा जहां ही भला,
कुछ भी बुरा मानना क्यूँ किसी को, जगत जो बना है भला।
हम आप दानी बनें जो लहू के, तो जिन्दगी रच सकें,
जिसको मिलेगा यहां एक जीवन, कहेगा मिली जिन्दगी॥

परिचय–हीरा सिंह चाहिल का उपनाम ‘बिल्ले’ है। जन्म तारीख-१५ फरवरी १९५५ तथा जन्म स्थान-कोतमा जिला- शहडोल (वर्तमान-अनूपपुर म.प्र.)है। वर्तमान एवं स्थाई पता तिफरा,बिलासपुर (छत्तीसगढ़)है। हिन्दी,अँग्रेजी,पंजाबी और बंगाली भाषा का ज्ञान रखने वाले श्री चाहिल की शिक्षा-हायर सेकंडरी और विद्युत में डिप्लोमा है। आपका कार्यक्षेत्र- छत्तीसगढ़ और म.प्र. है। सामाजिक गतिविधि में व्यावहारिक मेल-जोल को प्रमुखता देने वाले बिल्ले की लेखन विधा-गीत,ग़ज़ल और लेख होने के साथ ही अभ्यासरत हैं। लिखने का उद्देश्य-रुचि है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-कवि नीरज हैं। प्रेरणापुंज-धर्मपत्नी श्रीमती शोभा चाहिल हैं। इनकी विशेषज्ञता-खेलकूद (फुटबॉल,वालीबाल,लान टेनिस)में है।

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