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हाँ,व्यथित हूँ मैं…

गीतांजली वार्ष्णेय ‘ गीतू’
बरेली(उत्तर प्रदेश)
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देख के भारत माँ को वक़्त ये बोला-
अंग-अंग है झूम रहा तेरा,छाई चहुँओर खुशहाली है,
फिर क्यों व्यथित,क्यूँ आँख में तेरी पानी है ?
बोली भारत माँ-“हाँ हूँ व्यथित मैं”

मैं व्यथित हूँ उस बच्ची के लिए…
जिसने सीखी थी अभी-अभी बोली,
हवस के भूखे दरिंदों ने उसकी अस्मत लूटी
कर निर्मम हत्या,उनकी इंसानियत कहाँ खोई थी।

हाँ व्यथित हूँ मैं उस अजन्मी कन्या के लिए…
मिटा दिया गर्भ में ही,डर से उन दरिंदो के,
जिसने इस दुनियाँ में आँख न खोली है।

हाँ व्यथित हूँ उन माँ,बहन,पत्नी के लिए…
भाई,पति और बेटा जिसने,
आतंकियों के बारूदी जाल में जान गंवाईं है।

हाँ व्यथित हूँ उन सैनिकों के लिए…
सीमा पर डटकर ही होली,दीवाली,ईद मनाई है,
सीमा पर ही शहीद हो गया,राखी की लाज निभायी है।

हाँ व्यथित हूँ मैं उस नारी के लिए..
भूल के अपना अस्तित्व जीती है सबके लिए,
फिर क्यूँ सीता,अनसुइया बन कभी चरित्र
कभी दहेज की बलि चढ़ाई जाती है।

हाँ व्यथित हूँ मैं उस कर्मचारी के लिए…
ऑफिस-ऑफिस घूम के गुहार लगाई है,
पेट काट कर अधिकारी को रिश्वत खूब खिलाई है।

हाँ व्यथित हूँ मैं उस माँ-बाप के लिए…
छोड़ अनाथ आश्रम में उनको चैन से सोते है,
जिनको पालने की खातिर आधी रोटी खाई है।

हाँ व्यथित हूँ मैं उस माँ के लिए…
मादरे वतन की रक्षा में जो पुत्र कुर्बान कर जाती है,
देश के लाल की खातिर पन्नाधाय बन जाती है।

हाँ व्यथित हूँ मैं आरक्षण की मार से…
किया बर्बाद योग्यता को जिसने,
अयोग्यों ने नौकरी पायी है।
बढ़ते दबाव से अनारक्षित ने फाँसी पाई है,
हाँ व्यथित हूँ मैं,व्यथित हूँ मैं…॥

परिचय-गीतांजली वार्ष्णेय का साहित्यिक उपनाम `गीतू` है। जन्म तारीख २९ अक्तूबर १९७३ और जन्म स्थान-हाथरस है। वर्तमान में आपका बसेरा बरेली(उत्तर प्रदेश) में स्थाई रूप से है। हिन्दी-अंग्रेजी भाषा का ज्ञान रखने वाली गीतांजली वार्ष्णेय ने एम.ए.,बी.एड. सहित विशेष बी.टी.सी. की शिक्षा हासिल की है। कार्यक्षेत्र में अध्यापन से जुड़ी होकर सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत महिला संगठन समूह का सहयोग करती हैं। इनकी लेखन विधा-कविता,लेख,कहानी तथा गीत है। ‘नर्मदा के रत्न’ एवं ‘साया’ सहित कईं सांझा संकलन में आपकी रचनाएँ आ चुकी हैं। इस क्षेत्र में आपको ५ सम्मान और पुरस्कार मिले हैं। गीतू की उपलब्धि-शहीद रत्न प्राप्ति है। लेखनी का उद्देश्य-साहित्यिक रुचि है। इनके पसंदीदा हिंदी लेखक-महादेवी वर्मा,जयशंकर प्रसाद,कबीर, तथा मैथिलीशरण गुप्त हैं। लेखन में प्रेरणापुंज-पापा हैं। विशेषज्ञता-कविता(मुक्त) है। हिंदी के लिए विचार-“हिंदी भाषा हमारी पहचान है,हमें हिंदी बोलने पर गर्व होना चाहिए,किन्तु आज हम अपने बच्चों को हिंदी के बजाय इंग्लिश बोलने पर जोर देते हैं।”

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