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सर्वव्यापक हूँ,चाहे जो करा लो

गीतांजली वार्ष्णेय ‘ गीतू’
बरेली(उत्तर प्रदेश)
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छोड़ विद्यालय हर जगह नज़र मैं आता हूँ,
अध्यापक हूँ,सर्वव्यापक हूँ
जनगणना से मतगणना तक,
भवन से ले के पशुगणना तक
चाहे जो काम करा लो।

गली-गली भटक रहा हूँ,
बच्चे,बूढ़े,पशु गिन रहा हूँ;
क्या पढ़ा था भूल गया हूँ,
धर्म क्या!कर्म भी भूल गया हूँ।

इस ऑफिस से उस ऑफिस तक,
जा-जा के थक गया हूँ
विवेक मेरा विकलांग हो गया,
फाइलों की उलटफेर में खो गया हूँ।

मैडम के चमचों से बोला,
विभाग के नेताओं से बोला
“कल आना,कल मिलेंगें”,
सुन-सुन के थक गया हूँ।

दिन बीते,फिर महीनों,फ़ाइल ऑफिस से लौटी,
जाने किस बात की रोक लग गयी
पता लगा कि फ़ाइल खो गयी,
बना-बना के फाइल थक गया हूँ।

फोन पे फोन लगाया,
फाइल में फिर नोट लगाया
अब बैठ कर यही सोच रहा हूँ,
क्या था मैं,अब क्या हो गया हूँll

परिचय-गीतांजली वार्ष्णेय का साहित्यिक उपनाम `गीतू` है। जन्म तारीख २९ अक्तूबर १९७३ और जन्म स्थान-हाथरस है। वर्तमान में आपका बसेरा बरेली(उत्तर प्रदेश) में स्थाई रूप से है। हिन्दी-अंग्रेजी भाषा का ज्ञान रखने वाली गीतांजली वार्ष्णेय ने एम.ए.,बी.एड. सहित विशेष बी.टी.सी. की शिक्षा हासिल की है। कार्यक्षेत्र में अध्यापन से जुड़ी होकर सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत महिला संगठन समूह का सहयोग करती हैं। इनकी लेखन विधा-कविता,लेख,कहानी तथा गीत है। ‘नर्मदा के रत्न’ एवं ‘साया’ सहित कईं सांझा संकलन में आपकी रचनाएँ आ चुकी हैं। इस क्षेत्र में आपको ५ सम्मान और पुरस्कार मिले हैं। गीतू की उपलब्धि-शहीद रत्न प्राप्ति है। लेखनी का उद्देश्य-साहित्यिक रुचि है। इनके पसंदीदा हिंदी लेखक-महादेवी वर्मा,जयशंकर प्रसाद,कबीर, तथा मैथिलीशरण गुप्त हैं। लेखन में प्रेरणापुंज-पापा हैं। विशेषज्ञता-कविता(मुक्त) है। हिंदी के लिए विचार-“हिंदी भाषा हमारी पहचान है,हमें हिंदी बोलने पर गर्व होना चाहिए,किन्तु आज हम अपने बच्चों को हिंदी के बजाय इंग्लिश बोलने पर जोर देते हैं।”

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