आशीष प्रेम ‘शंकर’
मधुबनी(बिहार)
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हिंदी दिवस स्पर्धा विशेष………………..
हम बन्दे हैं भारत माँ के
अपना फर्ज निभाएंगे,
हिन्द देश,हिन्दी भाषा की
घर-घर अलख जगाएंगे।
यह भाषा हर नाम सिखाती
हर दिल में अरमान जगाती,
है दुनिया में इसकी रौनक
यह हमको पहचान दिलाती।
इसका कर्ज बहुत है हम पर
कैसे करुं बयां किस कदर,
आर्यावत जब हुआ स्वाधीन
इसने किया काज इस कदर।
राग-द्वेष से भरी हुई थी
गोरों की काली भाषा,
न कोई सम्मान था जिसमें
थी जैसे वो कटु-वरसा।
अहम आग में डूबा हुआ
वो थी अंग्रेजों की भाषा,
दे तिलांजलि इस भाषा को
सन १९६५ हिन्दी लाया।
बहुत किये संघर्ष सभी ने
क्या हो राष्ट्र की भाषा,
अटक से कटक,काशी से कन्या
सबका हो जिसमें साझा।
हिन्दी है एक तार प्यार का
प्यारे-प्यारे शब्द पिरोए,
यह भाषा भगवान को प्यारी,
प्यार इसकी मधुराषा।
परिचय-आशीष कुमार पाण्डेय का साहित्यिक उपनाम ‘आशीष प्रेम शंकर’ है। यह पण्डौल(मधुबनी,बिहार)में १९९८ में २२ फरवरी को जन्में हैं,तथा वर्तमान और स्थाई निवास पण्डौल ही है। इनको हिन्दी, मैथिली और उर्दू भाषा का ज्ञान है। बिहार से रिश्ता रखने वाले आशीष पाण्डेय ने बी.-एससी. की शिक्षा हासिल की है। फिलहाल कार्यक्षेत्र-पढ़ाई है। आप सामाजिक गतिविधि में सक्रिय हैं। लेखन विधा-काव्य है। प्राप्त सम्मान-पुरस्कार में केसरी सिंह बारहठ सम्मान,साहित्य साधक सम्मान,मीन साहित्यिक सम्मान और मिथिलाक्षर प्रवीण सम्मान हैं। आपकी लेखनी का उद्देश्य-जागरूक होना और लोगों को भी करना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-रामधारी सिंह ‘दिनकर’ एवं प्रेरणापुंज-पूर्वज विद्यापति हैं। इनकी विशेषज्ञता-संगीत एवं रचनात्मकता है। देश और हिंदी भाषा के प्रति विचार-“हिन्दी हमारी भाषा है,और इसके लिए हमारे पूर्वजों ने क्या कुछ नहीं किया है,लेकिन वर्तमान में इसकी स्थिति खराब होती जा रही है। लोग इसे प्रयोग करने में स्वयं को अपमानित अनुभव करते हैं,पर हमें इसके प्रति फिर से और प्रेम जगाना है,क्योंकि ये हमारी सांस्कृतिक विरासत है। इसे इतना तुच्छ न समझा जाए।