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हिन्दी का अभिमान

नताशा गिरी  ‘शिखा’ 
मुंबई(महाराष्ट्र)
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हिंदी  दिवस स्पर्धा विशेष………………..


हिंद की निवासी हूँ,हिंदी का अभिमान चाहती हूँ,
अंग्रेजी का बहिष्कार नहीं,हिंदी का अधिकार चाहती हूँ।

कब कहा है मैंने अंग्रेजी मीडियम से बच्चे न पढ़ाओ,
साथ में उनको रामायण-महाभारत की कहानियां भी तो बतलाओ।

बतियाने लगे हैं बच्चे अंग्रेजी में गिटपिट-गिटपिट,
माँ-बाप का सीना देखो तब हो जाता है ५६ इंच।

पश्चात सभ्यता में विलीन होने हम सब चले हैं,
भूल गए हैं सब कि पश्चिम में ही तो सूर्य ढले।

भूल गए हो अब क्या भइया,
होती थी अपनी शुरुआत मातु पिता के चरणों सेl

अब तो देखो प्रपंच विदेशी बच्चों का चुंबन से ही काम चले,
हमने ही बिसराया है,जो माँ-बाप ने जो हमें सिखाया है।

हम ही इतने गरजू हैं कि,पश्चिम सभ्यता ने हमें लुभाया है,
जाॅनी-जाॅनी के चक्कर में मछली रानी को हमने भुलाया है।

सरकार ने भी भरमाया है बड़े पद पे अंग्रेजी बाबू को बिठाया है,
अब तो नींव ही गलत पड़ी है भइया,औरत को भी कब चाहे संइया।

न लुभाए किसी को लुगाई,चाहिए सबको वाइफ हाई-फाई,
हिंदी बतियाने में अब शर्म सबको आती है।

अंग्रेजी में हैलो हाउ आर यू कहना ही सबको भाता है,
शर्मिंदा हैं हम,लगता है हम अनपढ़ का ही सम्मान करें…
जिनकी होती सुबह राम नाम से हो उन पर ही अभिमान करें॥

परिचय-नताशा गिरी का साहित्यिक उपनाम ‘शिखा’ है। १५ अगस्त १९८६ को ज्ञानपुर भदोही(उत्तर प्रदेश)में जन्मीं नताशा गिरी का वर्तमान में नालासोपारा पश्चिम,पालघर(मुंबई)में स्थाई बसेरा है। हिन्दी-अंग्रेजी भाषा का ज्ञान रखने वाली महाराष्ट्र राज्य वासी शिखा की शिक्षा-स्नातकोत्तर एवं कार्यक्षेत्र-चिकित्सा प्रतिनिधि है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत लोगों के शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य की भलाई के लिए निःशुल्क शिविर लगाती हैं। लेखन विधा-कविता है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-जनजागृति,आदर्श विचारों को बढ़ावा देना,अच्छाई अनुसरण करना और लोगों से करवाना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-मुंशी प्रेमचंद और प्रेरणापुंज भी यही हैं। विशेषज्ञता-निर्भीकता और आत्म स्वाभिमानी होना है। देश और हिंदी भाषा के प्रति विचार-“अखण्डता को एकता के सूत्र में पिरोने का यही सबसे सही प्रयास है। हिन्दी को राष्ट्रीय भाषा घोषित किया जाए,और विविधता को समाप्त किया जाए।”

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