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मशहूर हूँ खुद की लाचारी से..

नताशा गिरी  ‘शिखा’ 
मुंबई(महाराष्ट्र)
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मैं कृषि हूँ,कृषि प्रधान देश का देश की रीढ़ की हड्डी हूँ,
देश की रक्त धाराओं में बहता हुआ प्रसिद्ध हूँ।

देखो ना…
मशहूर हूँ मैं दुनिया में खुद की लाचारी से,
भुखमरी,अकाल,अशिक्षा की बीमारी से।

माना तृप्त करता हूँ मैं सबको,
फिर क्यूँ खुद ही भूखा रह जाता हूँ…
दो वक्त की रोटी का सपना लेकर जगता हूँ,
फिर वैसे ही सो जाता हूँ।

दिन ढले मैं घर पर लौटूँ,
बच्चे बापू-बापू चिल्लाते हैं…
खाली हाथ देख मेरा,
फिर माँ के आँचल में छुप जाते हैं।

बीबी से नजर चुराता,
क्यों मैं खुद को बेबस पाता हूँ…
रात के अंधेरे में देखो छुप-छुप के रोया करता हूँ।

फिर पथराई आँखों से पत्थर की मूरत को बहलाता हूँ,
समझ नहीं आता मुझको…
सूद भरूँ कि असल भरूँ!
या इस नर्क भरे जीवन को ही नेस्तनाबूत करूँ।

शायद फिर मुआवजे का मरहम ही मिल जाए,
अखबारों की सुर्खियों में कुछ दिन जिंदा रह पाऊंगा…
इसका कोई गम नहीं,
फिर रद्दी में ही बिक जाऊंगा।

बस सरकार से इतना ही फरमाऊगाँ,
वंशज को कर्ज़दार से मुक्त करें…l
जैसे ज़िया है जीवन मैंने कृष जगत में,
ऐसे जीवन को अपवाद कहेंll

परिचय-नताशा गिरी का साहित्यिक उपनाम ‘शिखा’ है। १५ अगस्त १९८६ को ज्ञानपुर भदोही(उत्तर प्रदेश)में जन्मीं नताशा गिरी का वर्तमान में नालासोपारा पश्चिम,पालघर(मुंबई)में स्थाई बसेरा है। हिन्दी-अंग्रेजी भाषा का ज्ञान रखने वाली महाराष्ट्र राज्य वासी शिखा की शिक्षा-स्नातकोत्तर एवं कार्यक्षेत्र-चिकित्सा प्रतिनिधि है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत लोगों के शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य की भलाई के लिए निःशुल्क शिविर लगाती हैं। लेखन विधा-कविता है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-जनजागृति,आदर्श विचारों को बढ़ावा देना,अच्छाई अनुसरण करना और लोगों से करवाना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-मुंशी प्रेमचंद और प्रेरणापुंज भी यही हैं। विशेषज्ञता-निर्भीकता और आत्म स्वाभिमानी होना है। देश और हिंदी भाषा के प्रति विचार-“अखण्डता को एकता के सूत्र में पिरोने का यही सबसे सही प्रयास है। हिन्दी को राष्ट्रीय भाषा घोषित किया जाए,और विविधता को समाप्त किया जाए।”

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