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हिसाब-किताब

वीना सक्सेना
इंदौर(मध्यप्रदेश)
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दो-तीन दिन से बेटे के गले पर एक हल्की-सी गठान दिखाई दे रही थी। माता-पिता बुरी तरह से घबरा गए। बच्चे को डॉक्टर के पास ले गए, डॉक्टर ने गठान की जांच कर कर कहा कि,ये शायद कैंसर हो सकता है। कैंसर…पति-पत्नी के तो पैर तले से जमीन ही खिसक गई। डॉक्टर ने कहा कि हम इसकी जांच किये बगैर कुछ पक्के तौर पर नहीं कह सकते हैं। बायोप्सी के लिए मुंबई भेजेंगे,तीन दिन बाद रिपोर्ट आएगी। उसके बाद बताएंगे कि यह गठान कैंसर की है या साधारण है। फिर भी दोनों ने पूछा कि अगर भगवान न करे कैंसर हुआ तो,उसके इलाज में कितना खर्चा आएगा ? डॉक्टर ने कहा-सात से आठ लाख में काम हो जाएगा। घबराओ मत,फिलहाल अभी तुमने शुरुआती स्टेज पर ही पकड़ लिया है इसलिए।
बच्चे को लेकर माता-पिता घर आ गए। चिंता और बेटे के प्रेम ने उन्हें सोने नहीं दिया,और आँखों ही आँखों में रात गुजार दी। हिसाब- किताब लगाते रहे,अपनी सारी जमा पूंजी का, जेवर का गहनों का,परंतु सारी संपत्ति का हिसाब लगाने के बाद भी वह साढ़े तीन-चार लाख से ज्यादा नहीं जोड़ पाए। अब उन्होंने उन लोगों की सूची बनाई,जिनसे उधार लिया जा सकता था,पर बात न बन पाई,तो चिंता में पड़ गए। अब एक ही उपाय था कि भगवान से प्रार्थना करें,कि भगवान यह गांठ कैंसर की ना हो।
दोनों पति-पत्नी सुबह उठे,नहाए-धोए और शहर के सबसे जागृत भगवान के मंदिर में पहुंचे। अपने बेटे के लिए दुआएं-मन्नतें मांगने लगे। आखिर तीन दिन गुजर ही गए,दोनों पति-पत्नी धड़कते हुए दिल से बेटे की रिपोर्ट लेने पहुंचे। भगवान ने शायद उनकी सुन ली थी,वह गांठ कैंसर की नहीं थी। डॉक्टर ने कहा कि,हर गाँठ कैंसर की नहीं होती है। दोनों ने मंदिर जाकर अपनी मन्नत पूरी की,और बच्चे का लालन-पालन पूरे मनोयोग से करने लगे। अब उन्हें अपना बच्चा पहले से भी ज्यादा प्रिय हो गया था।
धीरे-धीरे समय गुजरा। पिताजी अब ७० वर्ष के हो गए थे,माताजी का देहांत हो गया था। अब वे अपने बेटे के साथ रहते थे। उन्हें एक पोता भी था,जो उनसे विशेष प्रेम करता था जो स्वाभाविक भी था।
पिताजी को कई दिन से नहाते समय सीने पर एक गांठ दिखाई दे रही थी,जो तकलीफ नहीं दे रही थी। इसलिए उन्होंने इसका किसी से जिक्र भी नहीं किया,ये सोचकर कि हर गांठ कैंसर की नहीं होती,लेकिन अब उस गांठ में से खून निकलने लगा था।
पोते ने आज जब अपने दादाजी की बनियान पर खून देखा,तो अपने पिताजी को बताया। पिताजी तुरंत उन्हें डॉक्टर को दिखाने ले गए तो उसने कहा कि यह कैंसर की गांठ है। बायोप्सी के लिए भेजी जाएगी,तीन दिन बाद रिपोर्ट आएगी। खर्च सोलह से सत्रह लाख तक आएगा। बेटे की शादी हो चुकी थी,बहू आ चुकी थी और पोता भी उन्नीस साल का हो गया था। दादाजी की बड़ी इच्छा थी कि,वह अपने पोते का विवाह होते देखें।
घर आने पर बेटे ने भी हिसाब लगाया। सब जोड़ा-धड़ी की,दोनों पति-पत्नी ने अपनी जमा पूंजी का हिसाब लगाया। हिसाब लगाने के बाद वह आठ-नौ लाख तक ही पहुंच पाए। अब ये बाकी के पैसे कहां से आएंगे ? इतने में पत्नी ने कहा कि-अभी तो हमें बहुत खर्चे हैं। सारे काम पड़े हैं। अपने बेटे को भी उच्च शिक्षा के लिए पैसों की जरूरत है,और भी तमाम खर्चे हैं,और पिताजी का अब इलाज करके भी क्या होगा। पिताजी तो अपनी जिंदगी जी चुके हैं,बेकार ही पैसा बर्बाद होगा। ‘कैंसर’ से कोई ठीक तो होता नहीं,जो होगा देखा जाएगा। यह सोचकर दोनों पति-पत्नी चैन से सो गए।

परिचय : श्रीमती वीना सक्सेना की पहचान इंदौर से मध्यप्रदेश तक में लेखिका और समाजसेविका की है।जन्मतिथि-२३ अक्टूबर एवं जन्म स्थान-सिकंदराराऊ (उत्तरप्रदेश)है। वर्तमान में इंदौर में ही रहती हैं। आप प्रदेश के अलावा अन्य प्रान्तों में भी २० से अधिक वर्ष से समाजसेवा में सक्रिय हैं। मन के भावों को कलम से अभिव्यक्ति देने में माहिर श्रीमती सक्सेना को कैदी महिलाओं औऱ फुटपाथी बच्चों को संस्कार शिक्षा देने के लिए राष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है। आपने कई पत्रिकाओं का सम्पादन भी किया है।आपकी रचनाएं अनेक पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुक़ी हैं। आप अच्छी साहित्यकार के साथ ही विश्वविद्यालय स्तर पर टेनिस टूर्नामेंट में चैम्पियन भी रही हैं। `कायस्थ गौरव` और `कायस्थ प्रतिभा` सम्मान से विशेष रूप से अंलकृत श्रीमती सक्सेना के कार्यक्रम आकाशवाणी एवं दूरदर्शन पर भी प्रसारित हुए हैं। कई पत्र-पत्रिकाओं में अनेक लेख प्रकाशित हो चुके हैंl आपका कार्यक्षेत्र-समाजसेवा है तथा सामजिक गतिविधि के तहत महिला समाज की कई इकाइयों में विभिन्न पदों पर कार्यरत हैंl उत्कृष्ट मंच संचालक होने के साथ ही बीएसएनएल, महिला उत्पीड़न समिति की सदस्य भी हैंl आपकी लेखन विधा खास तौर से लघुकथा हैl आपकी लेखनी का उद्देश्य-मन के भावों को अभिव्यक्ति देना हैl

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