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यूरोप में भारत विरोध निरर्थक

डॉ.वेदप्रताप वैदिक
गुड़गांव (दिल्ली) 
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यूरोपीय संघ की संसद में अब भारत की डटकर भर्त्सना होने वाली है। उसके ७५१ सदस्यों में से ६०० से भी ज्यादा ने जो प्रस्ताव यूरोपीय संसद में रखे हैं,उनमें हमारे नए नागरिकता कानून और कश्मीर के पूर्ण विलय की कड़ी आलोचना की है। जिन सांसदों ने इस कानून को भारत का आतंरिक मामला माना है और भारत की भर्त्सना नहीं की है,उन्होंने भी अपने प्रस्ताव में कहा है कि पाकिस्तान,बांग्लादेश और अफगानिस्तान से आनेवाले शरणार्थियों में धार्मिक भेद-भाव नहीं किया जाना चाहिए। मैं मानता हूँ कि यूरोपीय संसद को किसी देश के आंतरिक मामले में टांग अड़ाने का कोई अधिकार नहीं है। वहां ये प्रस्ताव शफ्फाक मुहम्मद नामक एक पाकिस्तानी मूल के सांसद के अभियान के कारण लाए जा रहे हैं। इसीलिए,इन प्रस्तावों में भारत-विरोधी अमर्यादित भाषा का प्रयोग किया गया है। भारत के लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला ने इस संबंध में यूरोपीय संघ के अध्यक्ष को पत्र भी लिखा है। मान लें कि यूरोपीय संसद इन प्रस्तावों को पारित कर देती है,तो भी क्या होगा ? कुछ नहीं। भारत की संसद भी चाहे तो यूरोपीय संसद के विरुद्ध प्रस्ताव पारित कर सकती है,लेकिन हम भारतीयों को यूरोपीय लोगों की एक मजबूरी को समझना चाहिए। हिटलर के जमाने में यहूदियों पर जो अत्याचार हुए थे,उनसे आज भी कांपे हुए यूरोपीय लोग दूसरे देशों की घटनाओं को उसी चश्मे से देखते हैं। वे भारत की महान और उदार परम्परा से परिचित नहीं हैं। इस समय यूरोपीय देशों के साथ भारत का व्यापार सबसे ज्यादा है। मार्च में भारत और यूरोपीय संघ की शिखर-बैठक होने वाली है। कहीं ऐसा नहीं हो कि दोनों के बीच ये प्रस्ताव अड़ंगा बन जाएं। इससे दोनों पक्षों को काफी हानि हो सकती है। इसीलिए,फ्रांसीसी दूतावास ने सफाई देते हुए कहा है कि यूरोपीय संसद की राय को यूरोपीय संघ की आधिकारिक राय नहीं माना जा सकता है। यदि ऐसा है,तो यह अच्छा है लेकिन भारत सरकार चाहे तो अगले सप्ताह शुरु होने वाले संसद के सत्र में इस नए नागरिकता कानून में आवश्यक संशोधन कर सकती है।

परिचय–डाॅ.वेदप्रताप वैदिक की गणना उन राष्ट्रीय अग्रदूतों में होती है,जिन्होंने हिंदी को मौलिक चिंतन की भाषा बनाया और भारतीय भाषाओं को उनका उचित स्थान दिलवाने के लिए सतत संघर्ष और त्याग किया। पत्रकारिता सहित राजनीतिक चिंतन, अंतरराष्ट्रीय राजनीति और हिंदी के लिए अपूर्व संघर्ष आदि अनेक क्षेत्रों में एकसाथ मूर्धन्यता प्रदर्शित करने वाले डाॅ.वैदिक का जन्म ३० दिसम्बर १९४४ को इंदौर में हुआ। आप रुसी, फारसी, जर्मन और संस्कृत भाषा के जानकार हैं। अपनी पीएच.डी. के शोध कार्य के दौरान कई विदेशी विश्वविद्यालयों में अध्ययन और शोध किया। अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त करके आप भारत के ऐसे पहले विद्वान हैं, जिन्होंने अंतरराष्ट्रीय राजनीति का शोध-ग्रंथ हिन्दी में लिखा है। इस पर उनका निष्कासन हुआ तो डाॅ. राममनोहर लोहिया,मधु लिमये,आचार्य कृपालानी,इंदिरा गांधी,गुरू गोलवलकर,दीनदयाल उपाध्याय, अटल बिहारी वाजपेयी सहित डाॅ. हरिवंशराय बच्चन जैसे कई नामी लोगों ने आपका डटकर समर्थन किया। सभी दलों के समर्थन से तब पहली बार उच्च शोध के लिए भारतीय भाषाओं के द्वार खुले। श्री वैदिक ने अपनी पहली जेल-यात्रा सिर्फ १३ वर्ष की आयु में हिंदी सत्याग्रही के तौर पर १९५७ में पटियाला जेल में की। कई भारतीय और विदेशी प्रधानमंत्रियों के व्यक्तिगत मित्र और अनौपचारिक सलाहकार डॉ.वैदिक लगभग ८० देशों की कूटनीतिक और अकादमिक यात्राएं कर चुके हैं। बड़ी उपलब्धि यह भी है कि १९९९ में संयुक्त राष्ट्र संघ में भारत का प्रतिनिधित्व किया है। आप पिछले ६० वर्ष में हजारों लेख लिख और भाषण दे चुके हैं। लगभग १० वर्ष तक समाचार समिति के संस्थापक-संपादक और उसके पहले अखबार के संपादक भी रहे हैं। फिलहाल दिल्ली तथा प्रदेशों और विदेशों के लगभग २०० समाचार पत्रों में भारतीय राजनीति और अंतरराष्ट्रीय राजनीति पर आपके लेख निरन्तर प्रकाशित होते हैं। आपको छात्र-काल में वक्तृत्व के अनेक अखिल भारतीय पुरस्कार मिले हैं तो भारतीय और विदेशी विश्वविद्यालयों में विशेष व्याख्यान दिए एवं अनेक अन्तरराष्ट्रीय सम्मेलनों में भारत का प्रतिनिधित्व किया है। आपकी प्रमुख पुस्तकें- ‘अफगानिस्तान में सोवियत-अमेरिकी प्रतिस्पर्धा’, ‘अंग्रेजी हटाओ:क्यों और कैसे ?’, ‘हिन्दी पत्रकारिता-विविध आयाम’,‘भारतीय विदेश नीतिः नए दिशा संकेत’,‘एथनिक क्राइसिस इन श्रीलंका:इंडियाज आॅप्शन्स’,‘हिन्दी का संपूर्ण समाचार-पत्र कैसा हो ?’ और ‘वर्तमान भारत’ आदि हैं। आप अनेक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कारों और सम्मानों से विभूषित हैं,जिसमें विश्व हिन्दी सम्मान (२००३),महात्मा गांधी सम्मान (२००८),दिनकर शिखर सम्मान,पुरुषोत्तम टंडन स्वर्ण पदक, गोविंद वल्लभ पंत पुरस्कार,हिन्दी अकादमी सम्मान सहित लोहिया सम्मान आदि हैं। गतिविधि के तहत डॉ.वैदिक अनेक न्यास, संस्थाओं और संगठनों में सक्रिय हैं तो भारतीय भाषा सम्मेलन एवं भारतीय विदेश नीति परिषद से भी जुड़े हुए हैं। पेशे से आपकी वृत्ति-सम्पादकीय निदेशक (भारतीय भाषाओं का महापोर्टल) तथा लगभग दर्जनभर प्रमुख अखबारों के लिए नियमित स्तंभ-लेखन की है। आपकी शिक्षा बी.ए.,एम.ए. (राजनीति शास्त्र),संस्कृत (सातवलेकर परीक्षा), रूसी और फारसी भाषा है। पिछले ३० वर्षों में अनेक भारतीय एवं विदेशी विश्वविद्यालयों में अन्तरराष्ट्रीय राजनीति एवं पत्रकारिता पर अध्यापन कार्यक्रम चलाते रहे हैं। भारत सरकार की अनेक सलाहकार समितियों के सदस्य,अंतरराष्ट्रीय राजनीति के विशेषज्ञ और हिंदी को विश्व भाषा के रूप में प्रतिष्ठित करने के लिए कृतसंकल्पित डॉ.वैदिक का निवास दिल्ली स्थित गुड़गांव में है।