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स्त्री-पुरुष का भेदभाव नहीं होना चाहिए

डॉ.वेदप्रताप वैदिक
गुड़गांव (दिल्ली) 
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आज भी पत्रकारिता तो क्या,सभी क्षेत्रों में क्या हम महिलाओं को समुचित अनुपात में देख पाते हैं ? ‘समुचित’ अनुपात शब्द का प्रयोग किया है,‘उचित’ अनुपात का नहीं। उचित का अर्थ तो यह भी लगाया जा सकता है कि दुनिया में जितने भी काम-धंधे हैं,उन सबमें ५० प्रतिशत संख्या महिलाओं की होनी चाहिए। यह ठीक नहीं है। कुछ काम ऐसे हैं,जिनमें महिलाओं की संख्या ५० प्रतिशत से भी ज्यादा रखना फायदेमंद है और कुछ में वह कम भी हो सकती है। असली बात यह है कि जिस काम को जो भी दक्षतापूर्वक कर सके,वह उसे मिलना चाहिए। उसमें स्त्री-पुरुष का भेदभाव नहीं होना चाहिए। जाति और मजहब का भी नहीं,लेकिन इस २१ वीं सदी की दुनिया का हाल क्या है ? संयुक्त राष्ट्र संघ की एक ताजा रपट के मुताबिक दुनिया के लगभग ९० प्रतिशत पुरुष ऐसे हैं,जो महिलाओं को अपने से कमतर समझते हैं। वे भूल जाते हैं कि भारत,श्रीलंका और इस्राइल की प्रधानमंत्री कौन थीं ? इंदिरा गांधी,श्रीमावो भंडारनायक और गोल्डा मीयर के मुकाबले के कितने पुरुष प्रधानमंत्री इन तीनों देशों में हुए हैं ? क्या ब्रिटेन की प्रधानमंत्री मार्गगेरेट थेचर और जर्मनी की चांसलर एंजेला मार्केल को हम भूल गए हैं ? भारत की कई महान महारानियों के नाम नहीं ले रहा हूँ,जिन्होंने कई महाराजाओं और बादशाहों के छक्के छुड़ा दिए थे। इस समय १९३ देशों में से सिर्फ १० में महिलाएं शीर्ष राजनीतिक पदों पर हैं। दुनिया की संसदों में महिलाओं की संख्या २४ प्रतिशत भी नहीं है। चिकित्सकों,अभियन्ताओं,वकीलों और वैज्ञानिकों में उनकी संख्या और भी कम है। भारत में महिलाओं से भेदभाव करने वाले पुरुषों की संख्या ९८.२८ प्रतिशत है तो पाकिस्तान हमसे भी आगे है। उसमें यह संख्या ९९.८१ प्रतिशत है। यूरोप,अमेरिका,चीन और जापान जैसे देशों में इधर ४०-५० वर्षों में काफी बदलाव आया है। उसी का नतीजा है कि ये देश महासम्पन्न और महाशक्ति कहलाने लगे हैं। अपने आधे समाज के प्रति उपेक्षा और हीनता का भाव हम छोड़ सकें,तो हमारे दक्षिण एशिया के सभी देश शीघ्र ही सम्पन्न और सुखी हो सकते है। हमारे यहां अभी यह सिर्फ कहावत ही रह गई है कि-‘यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः।` अर्थात जहां नारी की पूजा होती है,वहां देवताओं का वास होता है।

परिचय–डाॅ.वेदप्रताप वैदिक की गणना उन राष्ट्रीय अग्रदूतों में होती है,जिन्होंने हिंदी को मौलिक चिंतन की भाषा बनाया और भारतीय भाषाओं को उनका उचित स्थान दिलवाने के लिए सतत संघर्ष और त्याग किया। पत्रकारिता सहित राजनीतिक चिंतन, अंतरराष्ट्रीय राजनीति और हिंदी के लिए अपूर्व संघर्ष आदि अनेक क्षेत्रों में एकसाथ मूर्धन्यता प्रदर्शित करने वाले डाॅ.वैदिक का जन्म ३० दिसम्बर १९४४ को इंदौर में हुआ। आप रुसी, फारसी, जर्मन और संस्कृत भाषा के जानकार हैं। अपनी पीएच.डी. के शोध कार्य के दौरान कई विदेशी विश्वविद्यालयों में अध्ययन और शोध किया। अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त करके आप भारत के ऐसे पहले विद्वान हैं, जिन्होंने अंतरराष्ट्रीय राजनीति का शोध-ग्रंथ हिन्दी में लिखा है। इस पर उनका निष्कासन हुआ तो डाॅ. राममनोहर लोहिया,मधु लिमये,आचार्य कृपालानी,इंदिरा गांधी,गुरू गोलवलकर,दीनदयाल उपाध्याय, अटल बिहारी वाजपेयी सहित डाॅ. हरिवंशराय बच्चन जैसे कई नामी लोगों ने आपका डटकर समर्थन किया। सभी दलों के समर्थन से तब पहली बार उच्च शोध के लिए भारतीय भाषाओं के द्वार खुले। श्री वैदिक ने अपनी पहली जेल-यात्रा सिर्फ १३ वर्ष की आयु में हिंदी सत्याग्रही के तौर पर १९५७ में पटियाला जेल में की। कई भारतीय और विदेशी प्रधानमंत्रियों के व्यक्तिगत मित्र और अनौपचारिक सलाहकार डॉ.वैदिक लगभग ८० देशों की कूटनीतिक और अकादमिक यात्राएं कर चुके हैं। बड़ी उपलब्धि यह भी है कि १९९९ में संयुक्त राष्ट्र संघ में भारत का प्रतिनिधित्व किया है। आप पिछले ६० वर्ष में हजारों लेख लिख और भाषण दे चुके हैं। लगभग १० वर्ष तक समाचार समिति के संस्थापक-संपादक और उसके पहले अखबार के संपादक भी रहे हैं। फिलहाल दिल्ली तथा प्रदेशों और विदेशों के लगभग २०० समाचार पत्रों में भारतीय राजनीति और अंतरराष्ट्रीय राजनीति पर आपके लेख निरन्तर प्रकाशित होते हैं। आपको छात्र-काल में वक्तृत्व के अनेक अखिल भारतीय पुरस्कार मिले हैं तो भारतीय और विदेशी विश्वविद्यालयों में विशेष व्याख्यान दिए एवं अनेक अन्तरराष्ट्रीय सम्मेलनों में भारत का प्रतिनिधित्व किया है। आपकी प्रमुख पुस्तकें- ‘अफगानिस्तान में सोवियत-अमेरिकी प्रतिस्पर्धा’, ‘अंग्रेजी हटाओ:क्यों और कैसे ?’, ‘हिन्दी पत्रकारिता-विविध आयाम’,‘भारतीय विदेश नीतिः नए दिशा संकेत’,‘एथनिक क्राइसिस इन श्रीलंका:इंडियाज आॅप्शन्स’,‘हिन्दी का संपूर्ण समाचार-पत्र कैसा हो ?’ और ‘वर्तमान भारत’ आदि हैं। आप अनेक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कारों और सम्मानों से विभूषित हैं,जिसमें विश्व हिन्दी सम्मान (२००३),महात्मा गांधी सम्मान (२००८),दिनकर शिखर सम्मान,पुरुषोत्तम टंडन स्वर्ण पदक, गोविंद वल्लभ पंत पुरस्कार,हिन्दी अकादमी सम्मान सहित लोहिया सम्मान आदि हैं। गतिविधि के तहत डॉ.वैदिक अनेक न्यास, संस्थाओं और संगठनों में सक्रिय हैं तो भारतीय भाषा सम्मेलन एवं भारतीय विदेश नीति परिषद से भी जुड़े हुए हैं। पेशे से आपकी वृत्ति-सम्पादकीय निदेशक (भारतीय भाषाओं का महापोर्टल) तथा लगभग दर्जनभर प्रमुख अखबारों के लिए नियमित स्तंभ-लेखन की है। आपकी शिक्षा बी.ए.,एम.ए. (राजनीति शास्त्र),संस्कृत (सातवलेकर परीक्षा), रूसी और फारसी भाषा है। पिछले ३० वर्षों में अनेक भारतीय एवं विदेशी विश्वविद्यालयों में अन्तरराष्ट्रीय राजनीति एवं पत्रकारिता पर अध्यापन कार्यक्रम चलाते रहे हैं। भारत सरकार की अनेक सलाहकार समितियों के सदस्य,अंतरराष्ट्रीय राजनीति के विशेषज्ञ और हिंदी को विश्व भाषा के रूप में प्रतिष्ठित करने के लिए कृतसंकल्पित डॉ.वैदिक का निवास दिल्ली स्थित गुड़गांव में है।

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