कमलेश वर्मा ‘कोमल’
अलवर (राजस्थान)
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पेड़ पर बैठी चिड़िया इस डाल पर उस डाल पर,
उछलती कूदती देखी मैंने।
ध्यान दिया तो देखा बच्चे नीड़ से झांक रहे हैं,
मन हरसाया, जब देखा मैंने चिड़िया को।
मुँह में भरकर लाई भोजन, देखा बच्चों को,
मुँह खोला नन्हें बच्चों ने, भोजन पाने को ।
चहचहाना जारी रहा उन नन्हें बच्चों का,
यूँ लगातार भोजन लाना उस चिड़िया का।
शांत हुआ जब चहचहाना बच्चों का पेड़ पर,
देखा मैंने नन्हें बच्चे छुपे बैठे हैं नीड़ पर।
जब पेड़ की शाखा भी हवा संग झूला झूली,
बच्चों के चहचहाने से खुशियों की रंगत फैली।
कुछ दिन बाद देखा उन नन्हें बच्चों को,
करते प्रयास चिड़िया संग उड़ने को।
ले गई संग चिड़िया अपने बच्चों को,
हर्षित हो गया मन देखा जब उड़ते बच्चों को॥
परिचय –कमलेश वर्मा लेखन जगत में उपनाम ‘कोमल’ से पहचान रखती हैं। ७ जुलाई १९८१ को दुनिया में आई रामगढ़ (अलवर) वासी कोमल का वर्तमान और स्थाई बसेरा जिला अलवर (राजस्थान) में ही है। आपको हिन्दी, संस्कृत व अंग्रेजी भाषा का ज्ञान है। एम.ए. व बी.एड. तक शिक्षित कमलेश वर्मा ‘कोमल’ का कार्यक्षेत्र व्याख्याता (निजी संस्था) का है। इनकी लेखन विधा-गीत व कविता है। इनकी रचनाएं पत्र-पत्रिका में प्रकाशित हुई हैं तो ब्लॉग पर भी लेखन जारी है। आपकी लेखनी का उद्देश्य-“कविता के माध्यम से विचार प्रकट करना एवं लोगों को जागरूक करना है।” पसंदीदा हिन्दी लेखक-मुंशी प्रेमचंद, महादेवी वर्मा, एवं जय शंकर प्रसाद हैं तो विशेषज्ञता- पद्य में है। बात की जाए जीवन लक्ष्य की तो भारतीय समाज में सम्मान प्राप्त करना है। देश और हिंदी भाषा के प्रति विचार -“राष्ट्र एक व्यक्ति के जीवन में महत्वपूर्ण स्थान रखता है। व्यक्ति के व्यक्तित्व का विकास राष्ट्र पर निर्भर करता है। हिंदी हमारी राष्ट्र और मातृत्व भाषा है, जो सरल तरीके से समझी और बोली भी जा सकती है। इसलिए इसे बढ़ाया ही जाना चाहिए।”