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खिले चरित सम पूर्णिमा

डॉ.राम कुमार झा ‘निकुंज’
बेंगलुरु (कर्नाटक)

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शरद पूर्णिमा पर्व शुभ, कार्तिक शुक्ल महान।
बने धारणा सिद्धि मन, लक्ष्मी दे यश मान॥

मिले सुयश सम्मान जग, शरद पूर्णिमा पर्व।
बरसे पद्माशा कृपा, हो पौरुष हित सर्व॥

खिले चरित सम पूर्णिमा, आलोकित पुरुषार्थ।
खिले खुशी सुरभित सुमन, प्रेम शान्ति देशार्थ॥

बनी धारणा सुन इतर, बने राग मन द्वेष।
हम जिससे अनजान हैं, कैसे सोच विशेष॥

रखें भाव निर्मल हृदय, गंगाजल सम तुल्य।
बने धारणा शुभ अपर, बनता मीत अमूल्य॥

पूनम की शशि चाँदनी, शीतल मधु मुस्कान।
विनत शील गुण कर्मपथ, मिले खुशी धन मान॥

संयम धीरज आत्मबल, मौन अटल गंभीर।
बढ़े सुपथ पौरुष सतत, विजयी हो रणधीर॥

मर्यादित सच आचरण, शील त्याग गुण धीर।
पुरुषोत्तम की ख्याति से, धवल कीर्ति रघुवीर॥

अविरत मेहनत पथ अटल, साथ
रहे भगवान।
हर बाधा कठिनाइयाँ, तोड़ चढ़े सोपान॥

तजो अमावस द्वेष तम, रच शीतल सच कर्म।
फैलाओ पूनम निशा,प्रेम शान्ति शुभ धर्म॥

रहे हृदय जो भावना, प्रकटित हो व्यवहार।
मानो तो पत्थर उसे, या शिव जगदाधार॥

निर्मल हो मन भावना, शरद पूर्णिमा तुल्य।
बनो गीत मन मीत जग, पौरुष दान अमूल्य॥

परिचय-डॉ.राम कुमार झा का साहित्यिक उपनाम ‘निकुंज’ है। १४ जुलाई १९६६ को दरभंगा में जन्मे डॉ. झा का वर्तमान निवास बेंगलुरु (कर्नाटक)में,जबकि स्थाई पता-दिल्ली स्थित एन.सी.आर.(गाज़ियाबाद)है। हिन्दी,संस्कृत,अंग्रेजी,मैथिली,बंगला, नेपाली,असमिया,भोजपुरी एवं डोगरी आदि भाषाओं का ज्ञान रखने वाले श्री झा का संबंध शहर लोनी(गाजि़याबाद उत्तर प्रदेश)से है। शिक्षा एम.ए.(हिन्दी, संस्कृत,इतिहास),बी.एड.,एल.एल.बी., पीएच-डी. और जे.आर.एफ. है। आपका कार्यक्षेत्र-वरिष्ठ अध्यापक (मल्लेश्वरम्,बेंगलूरु) का है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत आप हिंंदी भाषा के प्रसार-प्रचार में ५० से अधिक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय साहित्यिक सामाजिक सांस्कृतिक संस्थाओं से जुड़कर सक्रिय हैं। लेखन विधा-मुक्तक,छन्दबद्ध काव्य,कथा,गीत,लेख ,ग़ज़ल और समालोचना है। प्रकाशन में डॉ.झा के खाते में काव्य संग्रह,दोहा मुक्तावली,कराहती संवेदनाएँ(शीघ्र ही)प्रस्तावित हैं,तो संस्कृत में महाभारते अंतर्राष्ट्रीय-सम्बन्धः कूटनीतिश्च(समालोचनात्मक ग्रन्थ) एवं सूक्ति-नवनीतम् भी आने वाली है। विभिन्न अखबारों में भी आपकी रचनाएँ प्रकाशित हैं। विशेष उपलब्धि-साहित्यिक संस्था का व्यवस्थापक सदस्य,मानद कवि से अलंकृत और एक संस्था का पूर्व महासचिव होना है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-हिन्दी साहित्य का विशेषकर अहिन्दी भाषा भाषियों में लेखन माध्यम से प्रचार-प्रसार सह सेवा करना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-महाप्राण सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ है। प्रेरणा पुंज- वैयाकरण झा(सह कवि स्व.पं. शिवशंकर झा)और डॉ.भगवतीचरण मिश्र है। आपकी विशेषज्ञता दोहा लेखन,मुक्तक काव्य और समालोचन सह रंगकर्मी की है। देश और हिन्दी भाषा के प्रति आपके विचार(दोहा)-
स्वभाषा सम्मान बढ़े,देश-भक्ति अभिमान।
जिसने दी है जिंदगी,बढ़ा शान दूँ जान॥ 
ऋण चुका मैं धन्य बनूँ,जो दी भाषा ज्ञान।
हिन्दी मेरी रूह है,जो भारत पहचान॥