डॉ.राम कुमार झा ‘निकुंज’
बेंगलुरु (कर्नाटक)
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एस-४०० करता विफल, पाक द्रोण की मार।
वायुवीर ‘ब्रह्मोस’ से, दहशत किया प्रहार॥
बने रफालें काल नभ, झुलसे नगरों पाक।
देख हार विस्मित हुआ, सैन्य शक्ति रण ख़ाक॥
आतंकी संकट विकट, घुसा राष्ट्र परिवेश।
देशद्रोहियों से सबल, दे हिंसा संदेश॥
सेना चहुँ सीमा वतन, रखे लाज इस देश।
पर दे लांछन सैन्य पर, मांगे साक्ष्य प्रवेश॥
कोई जनहित योजना, लाती जब सरकार।
सदा विपक्षी दल करे, नित विरोध दुत्कार॥
नेताओं के बोल से, दल होते बदनाम।
खो विवेक मति आत्मबल, हिंसा करते आम॥
गज़ब आदतों से घिरे, नेताओं के बोल।
धर्म जाति भाषा ज़हर, सैन्य शौर्य रस घोल॥
कुशल प्रजा भारत सदा, रक्षक सेना देश।
रखे तिरंगा शान को, समरसता परिवेश॥
सीमान्तक सेना बहुल, देते निज बलिदान।
आजादी माँ भारती, रखे आन सम्मान॥
गौरव है सेना वतन, जो भारत की शान।
भूले घर-परिवार को, करे शत्रु संहार॥
भारत सीमा सुरक्षित, घर समाज परिवार।
भारत सैनिक पाक में, मचता हाहाकार॥
तन-मन अर्पण निज वतन, सैनिक और जवान।
रखे सुरक्षित देश चहुँ, जन-गण भारत मान॥
सीमा चहुँ सैनिक किये, सुख वैभव का त्याग।
घुसकर सीमा पाक की, ध्वस्त दहशती नाग॥
परिचय-डॉ.राम कुमार झा का साहित्यिक उपनाम ‘निकुंज’ है। १४ जुलाई १९६६ को दरभंगा में जन्मे डॉ. झा का वर्तमान निवास बेंगलुरु (कर्नाटक)में,जबकि स्थाई पता-दिल्ली स्थित एन.सी.आर.(गाज़ियाबाद)है। हिन्दी,संस्कृत,अंग्रेजी,मैथिली,बंगला, नेपाली,असमिया,भोजपुरी एवं डोगरी आदि भाषाओं का ज्ञान रखने वाले श्री झा का संबंध शहर लोनी(गाजि़याबाद उत्तर प्रदेश)से है। शिक्षा एम.ए.(हिन्दी, संस्कृत,इतिहास),बी.एड.,एल.एल.बी., पीएच-डी. और जे.आर.एफ. है। आपका कार्यक्षेत्र-वरिष्ठ अध्यापक (मल्लेश्वरम्,बेंगलूरु) का है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत आप हिंंदी भाषा के प्रसार-प्रचार में ५० से अधिक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय साहित्यिक सामाजिक सांस्कृतिक संस्थाओं से जुड़कर सक्रिय हैं। लेखन विधा-मुक्तक,छन्दबद्ध काव्य,कथा,गीत,लेख ,ग़ज़ल और समालोचना है। प्रकाशन में डॉ.झा के खाते में काव्य संग्रह,दोहा मुक्तावली,कराहती संवेदनाएँ(शीघ्र ही)प्रस्तावित हैं,तो संस्कृत में महाभारते अंतर्राष्ट्रीय-सम्बन्धः कूटनीतिश्च(समालोचनात्मक ग्रन्थ) एवं सूक्ति-नवनीतम् भी आने वाली है। विभिन्न अखबारों में भी आपकी रचनाएँ प्रकाशित हैं। विशेष उपलब्धि-साहित्यिक संस्था का व्यवस्थापक सदस्य,मानद कवि से अलंकृत और एक संस्था का पूर्व महासचिव होना है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-हिन्दी साहित्य का विशेषकर अहिन्दी भाषा भाषियों में लेखन माध्यम से प्रचार-प्रसार सह सेवा करना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-महाप्राण सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ है। प्रेरणा पुंज- वैयाकरण झा(सह कवि स्व.पं. शिवशंकर झा)और डॉ.भगवतीचरण मिश्र है। आपकी विशेषज्ञता दोहा लेखन,मुक्तक काव्य और समालोचन सह रंगकर्मी की है। देश और हिन्दी भाषा के प्रति आपके विचार(दोहा)-
स्वभाषा सम्मान बढ़े,देश-भक्ति अभिमान।
जिसने दी है जिंदगी,बढ़ा शान दूँ जान॥
ऋण चुका मैं धन्य बनूँ,जो दी भाषा ज्ञान।
हिन्दी मेरी रूह है,जो भारत पहचान॥
