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रौशनी की किरण

हीरा सिंह चाहिल ‘बिल्ले’
बिलासपुर (छत्तीसगढ़)

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(रचना शिल्प:२१२ २१२ २१२ २१२)

रौशनी की किरण दे जमीं को गगन।
नीर देती जमीं साथ होती पवनll

लेन और् देन के खेल दोनों करें,
सृष्टि-दस्तूर जो ये अदा सब करें।
जिन्दगी भी निभाए ये दस्तूर तो,
जिन्दगी में खिलेंगे सुखों के चमन।
रौशनी की किरण…

हाल बदला करे वक्त सबके यहाँ,
वक्त की हो अगर कद्र सबसे यहाँ।
तो न क्यों वक्त भी दे खुशी के पहर,
कौन करता न अपनी कदर को नमन।
रौशनी की किरण…

दौर अपना खतम होगा जब भी कभी,
तब बनेगा ये अपने अनुज का सभी।
ये दुआ हो कि सबको भला ही मिले,
सब भलाई के करते रहें हर करम।
रौशनी की किरण…

जिन्दगी में तो रहते हैं सुख-दु:ख सदा।
धूप और् छाँव बनकर ये होते अदा।
कोई पहले से करता नहीं कुछ कभी,
वक्त पड़ने पे करते हैं सब ही जतन।
रौशनी की किरण…ll

परिचय-हीरा सिंह चाहिल का उपनाम ‘बिल्ले’ है। जन्म तारीख-१५ फरवरी १९५५ तथा जन्म स्थान-कोतमा जिला- शहडोल (वर्तमान-अनूपपुर म.प्र.)है। वर्तमान एवं स्थाई पता तिफरा,बिलासपुर (छत्तीसगढ़)है। हिन्दी,अँग्रेजी,पंजाबी और बंगाली भाषा का ज्ञान रखने वाले श्री चाहिल की शिक्षा-हायर सेकंडरी और विद्युत में डिप्लोमा है। आपका कार्यक्षेत्र- छत्तीसगढ़ और म.प्र. है। सामाजिक गतिविधि में व्यावहारिक मेल-जोल को प्रमुखता देने वाले बिल्ले की लेखन विधा-गीत,ग़ज़ल और लेख होने के साथ ही अभ्यासरत हैं। लिखने का उद्देश्य-रुचि है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-कवि नीरज हैं। प्रेरणापुंज-धर्मपत्नी श्रीमती शोभा चाहिल हैं। इनकी विशेषज्ञता-खेलकूद (फुटबॉल,वालीबाल,लान टेनिस)में है।

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