हेमेन्द्र क्षीरसागर
बालाघाट(मध्यप्रदेश)
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समाधान में समस्या ढूँढना मौकापरस्तों की फितरत होती है,चाहे मौका कुछ भी हो ऐसे लोग अपनी कुत्सित महारत दिखा ही देते हैं। बदस्तूर आज सारा विश्व कोरोना
संक्रमण से जूझ रहा है,लोग बेमौत मारे जा रहे हैं,इस बीच एक उम्मीद की एक किरण नजर आती है,उस पर बेलगामी तत्थाकथित सत्तालोलुप राजनेता,ज्ञानशोधकों की बदजुबानी जहर घोलने में मुस्तैदी से लगी हुई है। इल्म,बड़ी शिद्दत से चिकित्सकों,वैज्ञानिकों और परीक्षण स्वंयसेवकों के प्राण-पण से तैयारी हुआ मेड इन इंडिया
टीके (कोविशील्ड और कोवैक्सीन) पर बेवजह संदेह उत्पन्न होने लगा। प्रतिभूत टीकाकरण में प्रथम श्रेणी के कोरोना योद्धाओं की संख्या पर्याप्त नहीं रही,हजारों टीके बर्बाद हो गए, जिससे हजारों कोरोना संक्रमण से बच सकते थे। इसकी मुराद में समूचा देश और विदेश पलक पावड़े खड़ा है कि मेरी बारी कब आएगी। आलम ऐसा ही रहा तो आगे भी मुश्किलों का सामना करना पड़ेगा। बावजूद हव्वे में तीर चलाने वाले अपनी हठधर्मिता में मशगूल हैं।
आखिर! इसका जिम्मेदार कौन है ? टीका नहीं लगवाने वाले या भ्रम फैलाने वाले ? बिल्कुल टीके के नाम पर विरोध के लिए विरोध की कुंठित राजनीतिक जमात गुनाहगार है। इसके लिए देश कदापि उन्हें माफ नहीं करेगा। बेहतर होता पूरी तरह खोजे,जांचे-परखे और अजमाए एक टीका जिंदगी का
कहे जाने वाले कोरोना टीके पर बेवजह हाय-तौबा मचाने की बजाए इसकी खामियां बताकर दूर करने में मददगार बनते,साथ ही जनसंदेशी वाहक के तौर पर लोगों में प्रचलित टीके का अलख जगाते। उधेड़बुन में तुगलकी फरमानी यह भूल गए कि एक अदद टीका खोजने में मुद्दत लग जाती है। बानगी में आज तक एड्स,कैंसर जैसी अनेक घातक रोगों का पुख्ता इलाज मुकम्मल नहीं हो पाया। वह तो भला हो हमारे ज्ञान-विज्ञान, आर्युविज्ञान और वैज्ञानिकों का, जिन्होंने अपनी अपार मेहनत के बल पर बमुश्किल १ साल के भीतर प्रभावी और सुरक्षित नहीं,अपितु २-२ टीके कोरोना के खात्मे के लिए समर्पित कर दिए,जिसके लिए जगत ने खुलेमन से भरोसे के साथ स्वागत करते हुए पाने की गुहार लगाई। निकट समय में और अधिक देशी टीके कोरोना को जड़मूलन करने की दर पर खड़े हैं। ऐसी बेजोड़ कल्पनाशक्ति,लगन,निष्ठा,कार्यक्षमता और दक्षता को जय हिन्द!
अतिशयोक्ति,जागरूकता की कमी और कोरोना टीके के बारे में जानकारी के अभाव में इतना भ्रम हो रहा है। प्रतिक्रिया देने से पहले जिन चीजों के बारे में पता होना चाहिए,वे हैं-हर टीका ग्राही की प्रतिरक्षा के अनुसार चर सुरक्षा प्रदान करता है। यह सामान्य बात है। यहां तक कि सबसे अच्छे टीकों के ९५ फीसदी परिणाम हैं। इसका मतलब यह भी है कि कुछ लोग उच्च प्रतिरोगक क्षमता प्रतिक्रिया विकसित कर सकते हैं,जबकि कुछ की प्रतिक्रिया बिल्कुल नहीं हो सकती है। ये बहुत ही असामान्य हैं। सभी टीके एलर्जी की प्रतिक्रिया का कारण बन सकते हैं। कई बार यह निर्धारित करना लगभग असंभव है कि कौन-सा रोगी एलर्जी की प्रतिक्रिया विकसित करेगा। इसलिए,एलर्जी वाले लोगों को टीकाकरण से गुजरने से पहले इसके बारे में सूचित करना चाहिए। घबराने की जरूरत नहीं है,बस याद रखें कि यह असामान्य,दुर्लभ है और सभी प्रकार के टीकाकरण में होता है।
कोरोना का टीका लगवाने के बाद कई बातों का ध्यान रखना जरूरी है क्योंकि इसके कुछ विपरीत प्रभाव हैं,जिनका असर हो सकता है। हालांकि,कई जानकारों ने कहा है कि देश में लगाई जा रही कोविशील्ड
और कोवैक्सीन
बिलकुल प्रभावी और सुरक्षित है। करीब पूरी दुनिया में कोरोना विषाणु के खिलाफ टीकाकरण अभियान शुरू हो चुका है। भारत में अब तक लाखों लोगों को टीका लगाया जा चुका है। टीकाकरण अब तक सामूहिक रोगप्रतिरोधक क्षमता हासिल करने का अच्छा माध्यम है। उससे हमें अंदाजा हो जाएगा कि,जिंदगी दोबारा पटरी पर कब तक लौट सकती है। मुँहपट्टी
से छुटकारा पाने की कोशिश करना वर्तमान में सबसे बड़ी गलतियों में से एक होगा। मुखपट्टी और शारीरिक दूरियां बरतना पूर्ण टीके तक जारी रखना होगा।
वस्तुत: देश की सरकार,चिकित्सकों,वैज्ञानिकों तथा प्रयोगीधर्मी स्वंयसेवकों की परखी जीवटता, अपार कर्तव्यप्रणता का अनुपालन,सम्मान और बेवजह की नुक्ता चीनी को दरकिनार करते हुए दुनिया के सबसे बड़े कोरोना टीकाकरण महाभियान का अहम हिस्सा बनें,यही वक्त की नजाकत और समय की दरकार है। फलीभूत ही देश और दुनिया से कोरोना का नामोनिशान मिटेगा ,तभी मचे कोहराम और मृत्यु से मुक्ति मिलेगी। यही संसार की मीमांसा है। फिर देर किस बात की, आईए,हम सब मिलकर दिल से लगाए एक टीका जिंदगी का।