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आँचल

बाबूलाल शर्मा
सिकंदरा(राजस्थान)
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आँचल-
धानी चूनर भारती,आँचल भरा ममत्व।
परिपाटी बलिदान की,विविध वर्ग भ्रातृत्व।
विविध वर्ग भ्रातत्व,एकता अपनी थाती।
आँचल भरे दुलार,हवा जब लोरी गाती।
शर्मा बाबू लाल,करें हम क्यों नादानी।
माँ का आँचल स्वच्छ,रहे यह चूनर धानी।

कजरा-
कजरा से सजते नयन,रहे सुरक्षित दृष्टि।
बुरी नजर को टालता,अनुपम कजरा सृष्टि।
अनुपम कजरा सृष्टि,साँवरे में गुण भारी।
चढ़े न दूजा रंग,कृष्ण आँखें कजरारी।
शर्मा बाबू लाल,बँधे जूड़े पर गजरा।
सुंदर सब श्रंगार,लगे नयनों में कजरा।

जीवन-
मानव दुर्लभ देह है,वृथा न जीवन जान।
लख चौरासी योनियाँ,जीवन मनुज समान।
जीवन मनुज समान,देव स्वर्गों के तरसे।
रमी अप्सरा भूमि,कई थी लम्बे अरसे।
शर्मा बाबू लाल,धर्म जीवन का आनव।
कर उपकारी कर्म,मनुज बन जाओ मानव।
(आनव=मानवोचित)

उपवन-
सीता जग माता बनी,जन्मी हल की नोक।
घर से वन उपवन गई,विपदा संग अशोक।
विपदा संग अशोक,वाटिका सिया वियोगी।
भटके वन वन राम,किया छल रावण जोगी।
शर्मा बाबू लाल,बया बिन उपवन रीता।
वन उपवन मय राम,पंचवट रमती सीता।

कविता-
कविता काव्य कवित्त के,करते कर्म कठोर।
कविजन केका कोकिला,कलित कलम की कोर।
कलित कलम की कोर,करे कंटकपथ कोमल।
कर्म करे कल्याण,कंठिनी काली कोयल।
कहता कवि करजोड़,करूँ कविताई कमिता।
काँपे काल कराल,कहो कम कैसे कविता।
(कमिता=कामना)

ममता-
ममता मूरत मानिये,मन्नत मन मनुहार।
महिमा मय मनभावना,मात मंगलाचार।
मात मंगलाचार,मायका मामा मामी।
प्यार प्रेम प्रतिरूप,पंथ पीहर प्रतिगामी।
कहता कवि करबद्ध,सिद्ध संतों-सी समता।
जंगम जगती जान,महत्ता माँ की ममता।

बाबुल-
बेटी घर में जन्म ले,मान भाग वरदान।
माँ को गर्व गुमान हो,बाबुल के कुल शान।
बाबुल के कुल शान,बनेगी बेटी पढ़ कर।
उभय वंश अरमान,पालती बेटी बढ़ कर।
कहे लाल कविराय,मरे खेटी आखेटी।
बाबुल कुल समृद्ध,चाह रखती हर बेटी।
(खेटी=चरित्रहीन)

भैया-
भैया बलदाऊ बड़े,छोटे कृष्ण कुमार।
हँसते खेले चौक में,करते नंद दुलार।
करते नंद दुलार,अंक में वे भर लेते।
ले कंधे बैठाय,कभी वे ताली देते।
शर्मा बाबू लाल,मंद मुस्काए मैया।
हो सबके सौभाग्य,रहें मिल ऐसे भैया।

बहना-
बंधन रिश्तों के निभे,रीत प्रीत अरमान।
प्यारी बहना चंद्र की,भारत भूमि महान।
भारत भूमि महान,गंग नद यमुना बहना।
बहना गंध समीर,भाव बहना कवि गहना।
कहे लाल कविराय,न बहना काजल चंदन।
पावन प्रीत प्रतीक,रक्ष बहना शुभ बंधन।

सखियाँ-
सखियाँ दुखिया हो रही,सहती कृष्ण वियोग।
उद्धव भँवरा बन रहा,ज्ञान बाँटता योग।
ज्ञान बाँटता योग,पन्थ निर्गुण समझाए।
सुनकर गोपी ज्ञान,भ्रमर का हृदय लुभाए।
शर्मा बाबू लाल,देख अलि झरती अँखियाँ।
हारा उद्धव ज्ञान,प्रेम पथ जीती सखियाँ!

परिचय : बाबूलाल शर्मा का साहित्यिक उपनाम-बौहरा हैl आपकी जन्मतिथि-१ मई १९६९ तथा जन्म स्थान-सिकन्दरा (दौसा) हैl वर्तमान में सिकन्दरा में ही आपका आशियाना हैl राजस्थान राज्य के सिकन्दरा शहर से रिश्ता रखने वाले श्री शर्मा की शिक्षा-एम.ए. और बी.एड. हैl आपका कार्यक्षेत्र-अध्यापन(राजकीय सेवा) का हैl सामाजिक क्षेत्र में आप `बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ` अभियान एवं सामाजिक सुधार के लिए सक्रिय रहते हैंl लेखन विधा में कविता,कहानी तथा उपन्यास लिखते हैंl शिक्षा एवं साक्षरता के क्षेत्र में आपको पुरस्कृत किया गया हैl आपकी नजर में लेखन का उद्देश्य-विद्यार्थी-बेटियों के हितार्थ,हिन्दी सेवा एवं स्वान्तः सुखायः हैl

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