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परिधान

राजबाला शर्मा ‘दीप’
अजमेर(राजस्थान)
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एक बार एक धोबी की दुकान पर नेता,अभिनेता,संत और किसान सभी के वस्त्र धुलने को आए। नेता,अभिनेता और संत के वस्त्र अपने अपने मालिकों की बढ़-चढ़कर तारीफ कर रहे थे। नेता जी के वस्त्र बोले,-“मेरा मालिक कलफ लगे सफेद चुन्न…टदार कुर्ता-पायजामा और जैकेट पहन कर हीरो की तरह लगता है। जनता उसका फूलों की मालाओं से स्वागत करती है। उसके भाषण पर तालियां बजती हैं। उसकी बहुत प्रतिष्ठा है। वह देश का माननीय कार्यकर्ता है। वह देश चलाता है।”
इस पर अभिनेता के वस्त्र बोले,-“मेरे मालिक के स्टाइलिश वस्त्रों पर आज के युवा जी-जान से फिदा हैं। सभी उसी की तरह दिखना चाहते हैं। मेरा मालिक जहां जाता है,उसकी एक झलक पाने के लिए उसके प्रशंसक दौड़ पड़ते हैं। सभी उसके अंधभक्त हैं।”
यह सुनकर संत के वस्त्र गर्व से बोले,-“मेरा मालिक तो सिल्क के धोती-कुर्ता और कंधे पर भगवा शॉल डालकर ईश्वर का साक्षात रूप लगता है। मेरे मालिक को तो जनता परमात्मा की तरह पूजती है। नेता और अभिनेता सभी उसके पैर छूते हैं। वह भविष्यवक्ता है।” फिर तीनों एकसाथ बोले,-और तुम्हारा मालिक-----!
किसान के वस्त्र जो कुछ गन्दे थे,इसलिए थोड़े चुप थे। तीनों के जोर देने पर बोले,-“व्यक्ति वस्त्रों से नहीं,गुणों से पहचाना जाता है। कपड़े शरीर के लिए हैं,योग्यता के लिए नहीं। नेता को उसकी कथनी और करनी,अभिनेता को उसके अभिनय और संत को उसके सदाचार से पूजा जाता है। मेरे मालिक के कपड़े उजले न सही,कर्म उजला है। वह दिन-रात मेहनत करके अपने परिवार व देश का पेट भरता है। वह देश का अन्नदाता है। पेट अन्न से भरता है,वस्त्रों से नहीं। अगर मेरा मालिक अन्न न उगाए तो क्या तुम्हारे मालिकों का पेट वस्त्रों से भरेगा ?”
अब तीनों निरुत्तर थे।

परिचय– राजबाला शर्मा का साहित्यिक उपनाम-दीप है। १४ सितम्बर १९५२ को भरतपुर (राज.)में जन्मीं राजबाला शर्मा का वर्तमान बसेरा अजमेर (राजस्थान)में है। स्थाई रुप से अजमेर निवासी दीप को भाषा ज्ञान-हिंदी एवं बृज का है। कार्यक्षेत्र-गृहिणी का है। इनकी लेखन विधा-कविता,कहानी, गज़ल है। माँ और इंतजार-साझा पुस्तक आपके खाते में है। लेखनी का उद्देश्य-जन जागरण तथा आत्मसंतुष्टि है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-शरदचंद्र, प्रेमचंद्र और नागार्जुन हैं। आपके लिए प्रेरणा पुंज-विवेकानंद जी हैं। सबके लिए संदेश-‘सत्यमेव जयते’ का है।

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