एस.के.कपूर ‘श्री हंस’
बरेली(उत्तरप्रदेश)
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आज आदमी अनगिनत चेहरे लगाये हज़ार है,
ना जाने कैसा चलन आ गया व्यवहार है।
मूल्य अवमूल्यन शब्द कोरे किताबी हो गये-
अंदर कुछ अलग कुछ आज आदमी बाहर है॥
जैसी करनी वैसी भरनी,यही विधि का विधान है,
गलत कर्मों की गठरी लिये घूम रहा इंसान है।
पाप-पुण्य का अंतर ही मिटा दिया है आज-
अहंकार से भीतर तक समा गया अज्ञान है॥
बोलता अधिक कि ज्यादा बात से बात खराब होती है,
मेरा ही हक,बस यहीं से पैदा दरार होती है।
अपना यश कम,दूसरों का अपयश सोचते अधिक-
बस यहीं से शुरुआत मौतें किरदार होती है॥
पाने का नहीं कि देने का दूसरा नाम खुशी है,
जो जानता है देना,वह रहता सदा सुखी है।
दुआएं तो बलाओं का भी मुँह हैं मोड़ देती-
जो रहता सदा लेने में,वो कहीं ज्यादा दुखी है॥