नहीं सृष्टि का मान
हीरा सिंह चाहिल ‘बिल्ले’बिलासपुर (छत्तीसगढ़) ************************************************** नदिया घट-घट में फिरे।सागर तट तक जाय॥प्यास बुझाए जीव की।जो भी लेता जाय॥ व्याकुल सागर हो गया।लहरें रहा उछाल॥नदियां बेचारी सभी।सूख रहीं बेहाल॥ प्राणी सब बेहाल हैं।दूषित है जलवायु॥जीना दूभर हो गया।चैन बिना हर आयु॥ बचपन बूढ़ा हो गया।बूढ़े हैं बेजान॥जीवन की साँसें घटी।नहीं सृष्टि का मान॥ मिटते जाते … Read more