नताशा गिरी ‘शिखा’
मुंबई(महाराष्ट्र)
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आशिकी-आवारगी की बहुत हो गई गुफ़्तगू,
खुद से तू उतनी ही,कभी मोहब्बत ही कर ले।
डाल मिट्टी उन तमाम संजीदगियों पर,
खोल मुट्ठी अनकही दबी ख्वाहिशों की।
क्यों देख रही है,हो किसी की रहमत,
बस तू हो जा ख़ुद से अब सहमत है।
कब तक रहेगी तुझमें बुलबुल की नजाकत,
बारिशों के डर से तू कब तक छिपती फिरेगी।
बाज़ बन बादलों के ऊपर जाने की चाहत तो कर लो,
महबूब से ज्यादा खुद से कभी मोहब्बत तो कर लो।
हिरनी-सी कब तक तू जंगलों में बहकती रहेगी,
बन शेरनी,चल शिकार के लिए भी चलेगी।
कब कहा है मैंने,लिखे जाएँ तेरे विजय गीत,
बस मैं कहती हूँ तू बन जा,खुद की सबसे अच्छी मीत॥
परिचय-नताशा गिरी का साहित्यिक उपनाम ‘शिखा’ है। १५ अगस्त १९८६ को ज्ञानपुर भदोही(उत्तर प्रदेश)में जन्मीं नताशा गिरी का वर्तमान में नालासोपारा पश्चिम,पालघर(मुंबई)में स्थाई बसेरा है। हिन्दी-अंग्रेजी भाषा का ज्ञान रखने वाली महाराष्ट्र राज्य वासी शिखा की शिक्षा-स्नातकोत्तर एवं कार्यक्षेत्र-चिकित्सा प्रतिनिधि है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत लोगों के शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य की भलाई के लिए निःशुल्क शिविर लगाती हैं। लेखन विधा-कविता है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-जनजागृति,आदर्श विचारों को बढ़ावा देना,अच्छाई अनुसरण करना और लोगों से करवाना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-मुंशी प्रेमचंद और प्रेरणापुंज भी यही हैं। विशेषज्ञता-निर्भीकता और आत्म स्वाभिमानी होना है। देश और हिंदी भाषा के प्रति विचार-“अखण्डता को एकता के सूत्र में पिरोने का यही सबसे सही प्रयास है। हिन्दी को राष्ट्रीय भाषा घोषित किया जाए,और विविधता को समाप्त किया जाए।”