एक विश्लेषण-उपन्यासों में ग्रामीण जीवन

विनोद वर्मा आज़ाद देपालपुर (मध्य प्रदेश)  ************************************************ उपन्यास आधुनिक युग की उपज है,उपन्यास वास्तविक जीवन की काल्पनिक कथा है। मुंशी प्रेमचंद के शब्दों में "मैं उपन्यास को मानव जीवन का चित्र…

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ग्रीष्मावकाश का बदलता स्वरुप:कल और आज

सुश्री नमिता दुबे इंदौर(मध्यप्रदेश) ******************************************************** एक समय था जब ग्रीष्म अवकाश में हम अपने नाना-नानी या किसी हिल स्टेशन या कहीं और घूमने का कार्यक्रम बनाकर चले जाते थे, ऐसा…

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हाय रे गरीबी

डीजेंद्र कुर्रे ‘कोहिनूर’  बलौदा बाजार(छत्तीसगढ़) ******************************************************************** भूख में तरसता यह चोला, कैसे बीतेगा ये जीवन। पहनने के लिए नहीं है वस्त्र, कैसे चलेगा ये जीवन। किसने मुझे जन्म दिया, किसने…

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मिलना-रूठना…

सारिका त्रिपाठी लखनऊ(उत्तरप्रदेश) ******************************************************* उसने कहा- अगर देवी के दर्शन हो सकते हैं तो मैं मिलना चाहूँगा। मैंने कहा- मैं तो वापिस जा रही हूँ एक साल बीत गया। मैंने…

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मुस्कराना जिन्दगी है..

संजय जैन  मुम्बई(महाराष्ट्र) ************************************************ फूल बनकर मुस्कराना जिन्दगी है, मुस्कुरा के गम भुलाना जिन्दगी हैl मिलकर लोग खुश होते हैं तो क्या हुआ, बिना मिले दोस्ती निभाना भी जिन्दगी हैll…

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एक बार और…

ऋतुराज धतरावदा इंदौर(मध्यप्रदेश) ******************************************************************* सोचता हूँ कुछ देर सुस्ता लूँ, झील किनारे बैठकर कहीं पीलूँ थोड़ा-सा मौन, खुद के अंदर उतरूँ जहाँ बरसों पहले, जाया करता था कभीl हर चीज…

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चार कुत्ते

राजबाला शर्मा ‘दीप’ अजमेर(राजस्थान) ******************************************************************************************** तीन कुत्ते आपस में बात कर रहे थे,चौथा कुत्ता चुप था। पहला कुत्ता बोला, -"तू चुप क्यों है,तेरा मालिक तो तुझे अपने बच्चे की तरह…

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मच्छर

इंदु भूषण बाली ‘परवाज़ मनावरी’ ज्यौड़ियां(जम्मू कश्मीर) ******************************************************** मच्छर को, कभी कम मत आंको। चूंकि, मच्छर घात लगाकर कभी वार नहीं करता। बल्कि, ललकारते हुए करता है आत्मघाती हमला, और…

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भाईचारा

बाबूलाल शर्मा सिकंदरा(राजस्थान) ************************************************* हार-जीत का वोट युद्ध था, कोई जीता-कोई हारा। दल दलदल को भूल सखे अब, अपना लो भाईचारा। जीत किसी की नहीं चुनावी, यह तो जनमत जीता…

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अखबार में लपेटा खाद्य पदार्थ जहर से कम नहीं

अशोक कुमार सेन ‘कुमार’ पाली(राजस्थान) ******************************************************************************** भारत के लोग किसी चीज़ का इतना दुरुपयोग करते हैं कि वास्तव में कई बार वह चीज़ जिस उद्देश्य के लिए बनी,वह तिरोहित हो…

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