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मिलना-रूठना…

सारिका त्रिपाठी
लखनऊ(उत्तरप्रदेश)
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उसने कहा-
अगर देवी के दर्शन हो सकते हैं
तो मैं मिलना चाहूँगा।

मैंने कहा-
मैं तो वापिस जा रही हूँ
एक साल बीत गया।

मैंने कहा-
मुझे मिलना है तुमसे।
उसने बहाने बना लिए,
फिर वो बहाने ही बनाता रहा
तीन साल तक।

एक दिन मैंने कह दिया-
मुझे अब कभी नहीं मिलना तुमसे।
वो रूठ गया,
दो साल रूठा रहा।

फिर अचानक से एक दिन आया,
(संदेश में)
मेरा हाथ पकड़ कर बैठा,
ढेर सारी बातें की
और बोला-
मैं कैसे रूठ सकता हूँ तुमसे!
ख़ामोश था,
पर तुम मेरे पास ही थी हमेशा।

मिलने मिलाने की बात करनी ही छोड़ दी
हम दोनों ने,
संदेशों में मिलने वाले उसके शब्द,
शब्द नहीं थे
ऊर्जा थे,
शक्तिपात थे।

कल अचानक,छह साल बाद
उसने कहा-
अबकी बार मुलाक़ात होगी!
मैंने कुछ नहीं कहा,
कुछ कहने की ज़रूरत ही नहीं रही।

मैं जानती हूँ अब,
वो भी जानता है
कायनात हर बात पूरी करती है,
पर सही समय आने पर।

और कायनात इंतज़ार कर रही थी,
हमारे ख़ुद में परिपूर्ण होने की
वो नहीं चाहता था कोई दर्द सहना,
वो नहीं चाहता था ऐसा मिलन
जिसमें बिछुड़ना तय हो,
हमारे ज़रिए वो अपनी परिपूर्णता तक पहुँचना चाहता था
हम आईने हैं उसके
हमारे अंदर ही मिलना था,
सृष्टि को वापिस अपने सृष्टा में
और एक अंतहीन बिछौड़े को ख़त्म करना था।

तो अब हम जब मिलेंगे,
न तो दो देह मिल रही होंगी
न ही दो रूहें…
रूह तो एक ही हो चुकी,
अब मिलेंगे दो काल खण्ड
ख़ुद में सम्पूर्ण,
परिपूर्ण
और एक नई अखंडता को अंजाम देंगे,
शक्ति फिर से घुलेगी शिव में
विरह को पूर्णविराम,
यूँ तो सब खेला ही है॥

परिचय-सारिका त्रिपाठी का निवास उत्तर प्रदेश राज्य के नवाबी शहर लखनऊ में है। यही स्थाई निवास है। इनकी शिक्षा रसायन शास्त्र में स्नातक है। जन्मतिथि १९ नवम्बर और जन्म स्थान-धनबाद है। आपका कार्यक्षेत्र- रेडियो जॉकी का है। यह पटकथा लिखती हैं तो रेडियो जॉकी का दायित्व भी निभा रही हैं। सामाजिक गतिविधि के तहत आप झुग्गी बस्ती में बच्चों को पढ़ाती हैं। आपके लेखों का प्रकाशन अखबार में हुआ है। लेखनी का उद्देश्य- हिन्दी भाषा अच्छी लगना और भावनाओं को शब्दों का रूप देना अच्छा लगता है। कलम से सामाजिक बदलाव लाना भी आपकी कोशिश है। भाषा ज्ञान में हिन्दी,अंग्रेजी, बंगला और भोजपुरी है। सारिका जी की रुचि-संगीत एवं रचनाएँ लिखना है।

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