दिव्यांग जन
आशा आजाद`कृतिकोरबा (छत्तीसगढ़)**************************** नेक व्यवहार-तन से होय भले ही, जो दिव्यांग।नहीं जानते लेकिन, करना स्वांग॥ पावन रहे भावना, सुंदर नेक।कोई दिव्यांग रहे, पर हम एक॥ हृदय भाव में रखते, सुंदर…
आशा आजाद`कृतिकोरबा (छत्तीसगढ़)**************************** नेक व्यवहार-तन से होय भले ही, जो दिव्यांग।नहीं जानते लेकिन, करना स्वांग॥ पावन रहे भावना, सुंदर नेक।कोई दिव्यांग रहे, पर हम एक॥ हृदय भाव में रखते, सुंदर…
डॉ.राम कुमार झा ‘निकुंज’बेंगलुरु (कर्नाटक) ************************************************* मैं हूँ आज की बेटी सफल,अथक प्रयासों का मानक हूँअटल ध्येय संकल्पित सत्पथ,सोपान शिखर आरोहक हूँ। मैं अचला निर्भय साहस बल,सम्मति विवेक रथ वाहक…
अजय जैन ‘विकल्प’इंदौर(मध्यप्रदेश)****************************************** अँधेरे से मत डर, कि इसकी उमर नहीं होती,तू तो मंजिल देख, जिसपे सबकी नजर नहीं होती। फैसले ले, बढ़ता चल…फलक के सितारे देख,डर मत, क्योंकि नाकामयाबी…
डॉ.अशोकपटना(बिहार)********************************** माँ घर के चूल्हे पर,हर क्षण झुलसती रहती हैबाप की जिन्दगी तपती दुपहरी,कुछ ख़ास कहती है। मेहनत और लगन से,बच्चों को हर वक्त खिलाता-संवारता रहता हैमाँ की पवित्र और…
राधा गोयलनई दिल्ली****************************************** औरत औरों को रोशनी देने के लिए,जलती रहती है…मोम-सी पिघलती है,शायद जलना, पिघलना और फिर खाक हो जाना ही उसका 'नसीब' है। जब-जब उसने ऊँची उड़ान भरनी…
आशा आजाद`कृतिकोरबा (छत्तीसगढ़)**************************** लापरवाही देख लें, अनहोनी हो जाय। सब बच्चों को आज तो, वाहन ही है भाय॥ वाहन ही है, भाय जोश में, तेज चलाते। नियम बने जो, नित्य…
हेमराज ठाकुरमंडी (हिमाचल प्रदेश)***************************************** प्रेम अन्त अभिलाषा है जीवन की,पर मिला वह सबको अधूरा ही हैराम-कृष्ण की कहानी को सुन लो,उनमें भी कौन-सा वह पूरा ही है ? यह रही…
दिनेश चन्द्र प्रसाद ‘दीनेश’कलकत्ता (पश्चिम बंगाल)******************************************* सूरज में नहीं है, उतनी गर्मी,जितनी तेरी साँसों में हैसागर में नहीं है, उतनी गहराई,जितनी तेरी आँखों में है। गुलाबों में नहीं है, उतनी…
ममता तिवारी ‘ममता’जांजगीर-चाम्पा(छत्तीसगढ़)************************************** कुछ पीड़ा कुछ अनुभूतियाँ,ठोस चट्टानों तल दबे लावे जैसीहृदय पर विप्लव मचाती रहती है,किंतु उसे बलात दबा करसागर गम्भीर, पर्वत-सा ऊँचा,पीड़ा की वह अवहेलना उपेक्षा करता है…।…
विजयलक्ष्मी विभा इलाहाबाद(उत्तरप्रदेश)************************************ अंजलि भर आतप से, आनन कुम्हला गया,चिन्तित हो अनदेखा, दर्पण धुंधला गया। रोदन से कंठ भरे,छवि जब कुछ बोलीपीड़ित हो गगन हिला,धरणी भी डोली।समझाते सावन का बादल तुतला…